नारियल दक्षिण में ही नहीं बल्कि बीसलपुर की तलहटी में भी उगाया जाएगा

Update: 2023-09-03 11:44 GMT
टोंक। टोंक थड़ोला केंद्र का मुख्य उद्देश्य प्रदेश की विपरीत परिस्थितियों में विभिन्न प्रजाति के फलदार पौधे का रोपण कर उत्तम किस्मों के मातृ पौधे उत्पादित करना है। पौधे किसानों को उपलब्ध कराने के साथ ही अन्य गतिविधियों की जानकारी दी जाएगी। टोडारायसिंह. पहाड़ी तलहटी व बीसलपुर बांध से जुड़े थड़ोला (टोडारायसिंह) गांव में कृषि विभाग की ओर स्थापित उद्यानिकी नवाचार तकनीकी ग्राह केन्द्र पर विपरीत परिस्थितियों के बीच बलुई रेत में अब अगले वर्ष से नारियल की पैदावार शुरू होगी। प्रदेश में टोडारायसिंह के थड़ोला गांव को कृषि विभाग मिनी गोवा के रूप में विकसित करने को लेकर प्रयासरत है। जहां स्थापित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को, एग्रो ट्यूरिज्म के तौर पर पहचान दिलाने की विशेष योजना बनाई है। देश में नारियल और सुपारी के बाद खजूर की खेती अधिकतर दक्षिण राज्यों के समुद्री तटों पर की जाती है, लेकिन अब बलुई मिट्टी वाले राजस्थान में भी, इसकी खेती के लिए वृहद स्तर पर नवाचार के प्रयास है। प्रारंभ में दो हैक्टेयर भूमि पर नारियल की खेती की शुरुआत की है।
उद्यान विभाग के सहायक कृषि अधिकारी प्रेमचंद जाट का कहना है। नारियल की खेती बेहद नम व आर्दतायुक्त वातावरण में की जाती है। यहां केंद्र पर खेती के लिए केरल राज्य से लाए गए हाइब्रिड, डवार्फ व टाल प्रजाति के करीब पौने चार सौ पौधे लगाए है। विपरीत परिस्थितियों के बीच उक्त पौधे संघर्षरत है। जिनमें 60 फीसदी पौधों में आगामी वर्ष से फलों की पैदावार शुरू होगी। राज्य सरकार की ओर से अमरूद उत्कृष्टता केंद्र देवड़ावास के अधिन वर्ष 2017-18 में उद्यानिकी नवाचार तकनीकी गृह केन्द्र हाईटेक थडोला की स्थापना की गई। जहां करीब 10 करोड़ की लागत से ग्राह केन्द्र पर कार्यालय भवन व गेस्ट हाउस निर्माण के अलावा ओपनव्हेल, ट्यूबवेल, ड्रिप संयंत्र में ऑटोमेशन की स्थापना 10 एचपी सोलर पम्प के साथ रूमटॉप सोलर पंप, सोलर स्ट्रीट लाइटें भी स्थापित की गई। केंद्र पर विभिन्न किस्मों के फलदार पौधों का रोपण कर नवाचार के लिए विकसित किया गया है। उक्त क्षेत्र में 12 महिने पर्याप्त पानी नहीं होने व बलुई रेत में भीषण तापमान के बीच विभाग के लिए नारियल की खेती करना बड़ी चुनौती है। क्योंकि तापमान 23 डिग्री की अपेक्षा 46 डिग्री, बारिश 2200 एमएम की अपेक्षा 550 एमएम ही होती है। इसके बावजूद पौधों को पाला जा रहा है। उक्त किस्मों में टॉल प्रजाति के अच्छे परिणाम आने की संभावना है, जिसकी खेती को भविष्य में बढ़ावा दिया जाएगा। खजूर, संतरा, चीकू, खजूर व जैतून आदि खेती की भी योजना है।
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