सीजेआई एनवी रमणा बोले- देश की 16 फीसदी अदालतों में नहीं हैं शौचालय, पढ़े और क्या कहा
नई दिल्ली: नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी का प्रस्ताव जल्दी ही हकीकत में बदल सकता है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने इसके संकेत दिए. उन्होंने ये उम्मीद जताई कि कानून मंत्री जल्द ही इससे संबंधित विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करेंगे जिससे ये मूर्त रूप ले सकेगा.
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ में एनेक्सी की दो इमारतों के लोकार्पण समारोह में सीजेआई ने ये उम्मीद जताई. समारोह में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई जज भी मौजूद थे. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमणा ने कहा कि मैंने अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव कानून मंत्री को भेज दिया है. अब इंतजार है उस पर सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया का ताकि नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू हो.
सीजेआई ने कहा कि देशभर की अदालतों में इसकी बेहद जरूरत है. अभी तक यही एक धारणा है कि देश की अदालतें पुरातन ढांचे पर ही चलती हैं. ऐसे लचर ढांचे में पूरी क्षमता और असरदार ढंग से काम करना मुश्किल होता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट के ढांचागत विकास से फरियादियों की भी अदालतों तक पहुंच आसान होती है. न्याय की राह आसान होती है. चीफ जस्टिस रमणा ने कहा कि अभी भी कोर्ट्स में ढांचागत विकास और सुविधाएं बिना किसी योजना के फौरी तौर पर ही किया जाता है. कोर्ट्स को आर्थिक रूप से भी स्वायत्त होना चाहिए.
चीफ जस्टिस रमणा ने इस संबंध में साल 2018 में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि समय से न्याय मिलने से देश की नौ फीसदी की सालाना वृद्धि दर के जैसी ही लागत आती है. बिना दुरुस्त ढांचे के हम लंबित मामलों और निपटाए जाने वाले मुकदमों की खाई नहीं पाट सकते. उन्होंने आंकड़ों के हवाले से कहा कि देश की 26 फीसदी अदालत परिसर में महिलाओं के लिए अलग शौचालय तक नहीं है और 16 फीसद अदालतों में तो शौचालय ही नहीं है.
सीजेाई ने कहा कि देश की सिर्फ 54 फीसद अदालतों में ही पीने के साफ पानी का इंतजाम है. सिर्फ पांच फीसदी कोर्ट कॉम्प्लेक्स में ही चिकित्सा की सुविधा है. अलग से रिकॉर्ड रूम तो सिर्फ 32 फीसद कोर्ट्स में ही हैं. देश में लगभग आधे कोर्ट परिसर में कानून की किताब का पुस्तकालय नहीं है. 51फीसद अदालतों में है और 49 फीसद में नहीं है. अभी भी सिर्फ 27 फीसद कोर्ट में ही जजों के टेबल पर कंप्यूटर लगे हैं. बाकी 73 फीसद जजों के टेबल पर तो फाइलें ही रहती हैं.