केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, समलैंगिक विवाह पर राज्यों को भी पक्षकार बनाया जाए
हलफनामे में कहा गया है कि भले ही वर्तमान मामला और इस अदालत द्वारा परिभाषित मुद्दा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक सीमित हो, इसके लिए विवाह नाम के एक कथित अलग सामाजिक संस्था के न्यायिक निर्माण की जरूरत है जो मौजूदा कानूनों से परे है।
नई दिल्ली (आईएएनएस)| केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर चल रही सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार के रूप में शामिल करने का अनुरोध किया है। केंद्र ने शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में कहा: भारत संघ, वर्तमान मामले में पक्षकार के रूप में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल करने और वर्तमान मुद्दे पर विभिन्न राज्यों के विचार आमंत्रित करने का अपना अनुरोध दोहराता है, क्योंकि यह मुद्दा स्पष्ट रूप से उनके विधाई दायरे में आता है; और उसके बाद ही माननीय न्यायालय में इस मुद्दे पर फैसला किया जाए।
हलफनामे में कहा गया है कि भले ही वर्तमान मामला और इस अदालत द्वारा परिभाषित मुद्दा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तक सीमित हो, इसके लिए विवाह नाम के एक कथित अलग सामाजिक संस्था के न्यायिक निर्माण की जरूरत है जो मौजूदा कानूनों से परे है।
इसमें आगे कहा गया है, संविधान के निमार्ताओं ने समवर्ती सूची में एक अलग प्रविष्टि के लिए विशेष रूप से प्रावधान किया है जो भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची का हिस्सा है। इसके तहत विवाह की इस संस्था के संबंध में कानून बनाने, एक वैध विवाह के लिए शर्तें तथा ऐसी संस्थाओं के नियम जैसे तलाक, गुजारा भत्ता आदि के लिए प्रावधान करने का एक संवैधानिक कार्य प्रदान किया गया है।
इसने आगे कहा, वर्तमान मुद्दों पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस नहीं दिए जाने की स्थिति में भारत संघ ने उक्त मुद्दे पर राज्यों के विचारों का पता लगाने के लिए सभी राज्यों के साथ परामर्श की कवायद शुरू कर दी है। भारत संघ ने सभी राज्यों को 18 अप्रैल 2023 को एक पत्र जारी कर याचिका के वर्तमान बैच में उठाए गए मौलिक मुद्दे पर टिप्पणियां और विचार आमंत्रित किए हैं।
केंद्र ने जोर देकर कहा कि उक्त मुद्दा वर्तमान मामले की जड़ तक जाता है और इसके दूरगामी निहितार्थ हैं। केंद्र ने वर्तमान हलफनामे को न्याय के हित में बताते हुए कहा, इसलिए, विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वर्तमान कार्यवाही में एक पक्षकार बनाया जाए और उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए और विकल्प के रूप में, भारत संघ को राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया पूरी करने, उनकी राय/आशंकाएं जानने और इन्हें संकलित कर माननीय न्यायालय के समक्ष रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाए। उसके बाद ही वर्तमान मुद्दे पर निर्णय लें।
हलफनामे में कहा गया है कि राज्यों को पक्षकार बनाए बिना, वर्तमान मुद्दे पर विशेष रूप से उनकी राय लिए बिना कोई भी निर्णय मौजूदा कवायद को अधूरा और सीमित कर देगा। केंद्र ने कहा, माननीय न्यायालय के समक्ष सभी राज्यों को वर्तमान मुकदमे में एक पक्ष बनाने और उनकी राय आमंत्रित करने के लिए 18 अप्रैल 2023 को सुनवाई के दौरान एक प्रार्थना की गई थी। उक्त संवैधानिक, न्यायशास्त्रीय और तार्किक रूप से उचित अनुरोध किए जाने के बावजूद माननीय न्यायालय ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया।
हलफनामे में कहा गया है, यह स्पष्ट है कि राज्यों के अधिकार, विशेष रूप से इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार, इस विषय पर किसी भी निर्णय से प्रभावित होंगे। आगे, विभिन्न राज्यों ने पहले ही इस विषय पर कानून बना लिया है।
केंद्र ने कहा कि ऐसे मामले में जहां सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के विधायी अधिकार और राज्यों के निवासियों के अधिकार स्पष्ट रूप से सवालों के घेरे में हैं, याचिकाकर्ता इसके लिए बाध्य हैं कि वे सभी राज्यों को मौजूदा मुकदमे में पक्षकार बनाएं।