उत्तराखंड की सभी जेलों में लगाए जाएंगे सीसीटीवी, इन नगरों में तीन नई जेल बनाने का प्रस्ताव

हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।

Update: 2021-09-23 18:08 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे और अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। आईजी जेल की ओर से शपथ पत्र प्रस्तुत कर कोर्ट को बताया गया कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और उप कारागार हल्द्वानी में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है। दूसरे चरण में राज्य की शेष सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाएंगे। पिथौरागढ़, चम्पावत और ऊधमसिंह नगर में तीन नई जेल बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 5 अक्तूबर की तिथि नियत की है। मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई।

पूर्व में हुई सुनवाई में कोर्ट ने जेल महानिरीक्षक से पूछा था कि जेल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना अनुपालन किया गया है? राज्य की जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, कैदियों के लिए रहने की क्या व्यवस्था है। जेल में उन्हें क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है, जेल मैनुअल में संशोधन किया गया है या नहीं तथा जेलों की क्षमता कितनी है।
कोर्ट ने इन बिंदुओं पर शपथ पत्र पेश करने को कहा था। गुरुवार को आईजी जेल की ओर से बताया गया कि कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का सहयोग लिया जा रहा है। कैदियों की जीवन शैली में सुधार के लिए आर्ट ऑफ लिविंग की मदद ली जा रही है। जेलों में कैदियों के रहने के लिए आवासों के निर्माण को टेंडर निकाला गया है। पिथौरागढ़, चम्पावत और ऊधमसिंह नगर में तीन नई जेल बनने के बाद अन्य जेलों से कैदियो को वहां शिफ्ट किया जाएगा। इस समय जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं।सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी, याचिका दायर
संतोष उपाध्याय एवं अन्य की ओर से अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यों से कहा था कि वे अपने यहां की सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं और वहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं। राज्य में मानवाधिकार आयोग के खाली पदों को भरने के आदेश भी दिए। लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। याचिकाकर्ताओं की हाईकोर्ट से याचना की है कि इस संबंध में सरकार को निर्देश दिए जाएं।
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