नेशनल हाईवे पर एक्सीडेंट में घायलों के लिए शुरू होगा कैशलेस इलाज योजना, सरकार उठाने जा रही ये कदम

नेशनल हाईवे पर दुर्घटना की स्थिति में किसी को पैसे के कारण अस्पताल में भर्ती कराने में दिक्कत न हो, इसके लिए कैशलेस बीमा की व्यवस्था की जा रही है.

Update: 2022-01-17 05:27 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नेशनल हाईवे पर दुर्घटना की स्थिति में किसी को पैसे के कारण अस्पताल में भर्ती कराने में दिक्कत न हो, इसके लिए कैशलेस बीमा (cashless treatment scheme for road crash victims) की व्यवस्था की जा रही है. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India-NHAI) ने इसके लिए बीमा कंपनियों से बोली को आमंत्रित किया है. एनएचएआई ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत दिल्ली-मुंबई-चेन्नई, चेन्नई-कोलकाता, कोलकाता-आगरा और आगरा से दिल्ली कॉरिडोर पर दुर्घटना की स्थिति में पीड़ितों को कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा प्रदान करने के लिए यह बोली आमंत्रित की है. इसके तहत अगले तीन साल तक बीमा कंपनियों को हाईवे पर होने वाली दुर्घटना में पीड़ितों को कैशलेस ट्रीटमेंट की सुविधा देनी होगी.

अगले 48 घंटे तक इलाज कराना होगा
जो बीमा कंपनी इस बोली को जीत लेगी, वह हाईवे पर दुर्घटना में पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने से लेकर अगले 48 घंटे तक उचित इलाज कराने के लिए जिम्मेदार होगी. कंपनी को 30 हजार तक का इलाज कराना होगा. बीमा कंपनियों पर ही पीड़ित को सड़क से आसपास के अस्पताल तक लाने की जिम्मेदारी होगी. एनएचएआई के एक अधिकारी ने बताया कि हमने इस मुद्दे पर कुछ बड़ी बीमा कंपनियों के साथ पहले दौर की बातचीत की है. एक बार जब कंपनी किश्त के लिए कोट का ब्यौरा दे देगी तो हम सफल बीमा कंपनी को रकम पैमेंट कर देंगे. इसके बाद उस कंपनी को हाईवे के आस-पास के अस्पतालों से समन्वय करना होगा. इसके साथ ही 24*7 एक हेल्पलाइन नंबर भी चलाना होगा. हाईवे पर एंबुलेंस को लगाना होगा.
सफल रही है यह योजना
गौरतलब है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 2013 में ही इस तरह की एक योजना पायलट परियोजना के तहत चलाई थी जो बेहद सफल रही थी. इस योजना के तहत सबसे पहले गुड़गांव-जयपुर हाईवे पर कैशलेस ट्रीटमेंट की व्यवस्था की गई थी. बाद में इस योजना का विस्तार मुंबई-बडोदरा, रांची-ररगांव-महुलिया खंड पर भी कर दिया गया था. इस पायलट योजना के तहत दुर्घटना में पीड़ित सौ फीसदी लोगों को आधे घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचाया गया था. इनमें 50 फीसदी से ज्यादा लाभान्वित आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े थे जबकि इनमें से 80 प्रतिशत लोगों को अपनी तरफ से एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ा.


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