तर्क खारिज: '…वेतन और भत्ते बराबर होने चाहिए'…सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक सेवा यानी जजों के कामकाज की तुलना सरकारी अधिकारियों की सेवा से नहीं की जा सकती। शीर्ष अदालत ने उन दलीलों को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया गया था कि न्यायिक अधिकारियों (जजों) और अन्य सरकारी अधिकारियों के वेतन और भत्ते बराबर …

Update: 2024-01-10 21:11 GMT

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक सेवा यानी जजों के कामकाज की तुलना सरकारी अधिकारियों की सेवा से नहीं की जा सकती। शीर्ष अदालत ने उन दलीलों को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया गया था कि न्यायिक अधिकारियों (जजों) और अन्य सरकारी अधिकारियों के वेतन और भत्ते बराबर होने चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यामयूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जजों के कामकाज की तुलना प्रशासनिक/कार्यपालिका के अधिकारियों से नहीं की जा सकती। वे (जज) मंत्रिपरिषद या राजनीतिक कार्यपालिका की तरह ही संप्रभु राज्य कार्यों का निर्वहन करते हैं और उनकी सेवा सचिवीय कर्मियों या प्रशासनिक कार्यकारी से भिन्न होती है जो राजनीतिक कार्यपालिका के निर्णयों को कार्यान्वित करती है, जबकि जज, न्यायिक कर्मचारियों से भिन्न होते हैं।’

पीठ ने जजों के सेवानिवृत्ति लाभ, वेतन, पेंशन और कामकाज की स्थिति को लेकर दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (एसएनजेपीसी) की सिफारिश को स्वीकारते हुए यह फैसला दिया है। पीठ ने कहा कि जजों के अदालत में काम के घंटे पर निर्भर नहीं करता है बल्कि फैसले लिखाने, फाइल पढ़ने, अगले दिन के मामलों की तैयारी सहित कई कार्यों के अलावा प्रशासनिक कार्य भी देखने होते हैं।

पीठ ने एसएनजेपीसी की सिफारिशों के मुताबिक जजों के सेवानिवृत्ति लाभ और अन्य आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी को प्रत्येक हाईकोर्ट में दो-जजों की समिति के गठन का निर्देश दिया। पीठ ने देशभर के न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में एकरूपता की आवश्यकता पर बल दिया है।

फैसले में कहा गया कि किसी जज के लिए सेवा की शर्तें सम्मानजनक हों, यह सुनिश्चित होना चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद की सेवा शर्तों का न्यायाधीश के पद की गरिमा और स्वतंत्रता तथा समाज के नजरिए पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है। पीठ ने कहा कि यदि न्यायपालिका सेवा को एक व्यवहार्य करियर विकल्प बनाना है और प्रतिभा को आकर्षित करना है तो कार्यरत और सेवानिवृत्त दोनों अफसरों के लिए सेवा की शर्तों में सुरक्षा और सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि अन्य सेवाओं के अधिकारियों ने एक जनवरी, 2016 को अपनी सेवा शर्तों में संशोधन का लाभ उठाया है, जबकि न्यायिक अधिकारियों से संबंधित ऐसे ही मुद्दे अब भी आठ साल से अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि सेवानिवृत्त जजों और जिन लोगों का निधन हो गया है, उनके पारिवारिक पेंशनभोगी भी समाधान का इंतजार कर रहे हैं।

एसएनजेपीसी की सिफारिशों में जिला न्यायपालिका की सेवा शर्तों को निर्धारित करने के लिए एक स्थायी तंत्र स्थापित करने के मुद्दे से निपटने के अलावा वेतन संरचना, पेंशन और पारिवारिक पेंशन और भत्ते आदि शामिल हैं।

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