यूपी में सवर्णों को एक बार फिर फोकस करने में जुटी बसपा

Update: 2023-09-13 08:30 GMT
लखनऊ: लोकसभा चुनाव में सभी दलों से दूरी बना चुकी बसपा अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए नए नए फॉर्मूले अपना रही है। एक तरफ उसके सामने काडर वोट बचाने की चुनौती से जूझ रही, वहीं दूसरी तरफ सवर्णों को जोड़ने की दिशा में काम कर रही है।
राजनीतिक जानकर बातते हैं कि बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला इस्तेमाल कर 2007 में सत्ता हासिल की थी। पार्टी ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों को टिकट दिया था और 41 सीटों पर उन्हें जीत हासिल हुई थी। इसके बाद उनका यह फॉर्मूला कामयाब नहीं हो सका। बल्कि सवर्ण वोट तो चला ही गया। उनका अपना दलित बेस वोट भी दरकने लगा। उन्होंने इसे बचाने के लिए कई फार्मूले बनाए लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। इसी कारण उसने एक बार फिर से सर्व समाज को जोड़ने की मुहिम को चलाया जाने की कवायद हो रही है।
बसपा के जानकर लोग बताते हैं कि पार्टी अपने बेस वोट को मजबूत करने में जुटी है जिससे वह कहीं और छिटक न सके। इसके अलावा सवर्ण वोटों को अपने पाले में रखने के लिए अलग से कार्य योजना बनाई जा रही है। बसपा से जुड़े एक नेता ने बताया कि 2019 के लोकसभा में मिली ताकत के बाद बसपा एक फिर से काडर कैंप करने जा रही है जिसमें सर्व समाज फॉर्मूले पर विशेष जोर रहेगा, खासकर कमजोर और न्याय प्रिय सवर्ण ब्राम्हण, क्षत्रिय वैश्य सभी को एक बार पार्टी में मजबूती के साथ जोड़ा जायेगा।
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल कहते हैं कि 2007 की तरह जनता से बसपा का गठबंधन होगा। हमारी पार्टी हर समाज को लेकर चलती है। लोकसभा चुनाव को लेकर 10 बूथ का एक कैडर कैंप चल रहा है जिसमें सर्व समाज के लोगों को बुलाया जाता है। गरीब सवर्ण को बुला रहे हैं। सवर्ण वोट खिसकने को भाजपा का दुष्प्रचार बताया है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि यूपी की सियासत में सवर्ण महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इनका सरकार बनाने में बड़ा रोल रहा है। कांग्रेस, सपा और बसपा इनकी बदौलत ही सत्ता में रही है। इनकी अनदेखी कोई दल नहीं कर सकता। मायावती का तो खास फोकस रहता है। इस समय उनके सामने अपने बेस वोट बचाए रखने की और सवर्ण वोट जोड़ने की बड़ी चुनौती है। इसमें वह कितना कामयाब होगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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