रेणुकाजी झील में मछलियों को ब्रेड-रस-आटा बैन

Update: 2024-05-12 09:29 GMT
नाहन। अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट वेटलैंड में अंकित व प्रदेश की पहली प्राकृतिक बड़ी झील श्रीरेणुकाजी में अब मछलियों को श्रद्धालु आटा, बे्रड, रस व चना इत्यादि कोई भी बाहरी वस्तुओं को नहीं डाल पाएंगे। प्रदेश वाइल्ड लाइफ विंग ने प्रदेश की प्राकृतिक धरोहर रामसर साइट वेटलैंड में मछलियों व झील के स्वास्थ्य के मद्देनजर यह निर्णय लिया है। बाकायदा स्थानीय भोग, प्रसाद विक्रेताओं को हिदायतें जारी की हैं कि झील में लोगों को बे्रड, रस, चना पैकेट इत्यादि न बेचें। इसके स्थान पर रेणुकाजी झील में मछलियों को फीडिंग के लिए विभाग ने खास किस्म की न्यूट्रिशन फीड उपलब्ध करवाई है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय वेटलैंड श्रीरेणुकाजी झील वाइल्ड लाइफ नियमों के तहत आती है, जिसका संरक्षण का जिम्मा वेटलैंड कमेटी व वाइल्ड लाइफ विंग के हवाले है। साथ ही प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी है। वहीं आस्था व नियमों के टकराव के बीच लगातार रेणुकाजी झील में संघर्ष का वातावरण बनता है। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि वाइल्ड लाइफ विंग यहां पर अनावश्यक दबाव बनाता है।
वहीं पहले आटा, बे्रड, चना व रस को भी मछलियों को खिलाने के लिए बंद कर दिया गया है। वहीं स्थानीय महिला मंडलों ने भी झील की सफाई को लेकर वाइल्ड विंग द्वारा रोक लगाने के प्रति रोष व्यक्त किया है। उधर वाइल्ड लाइफ विंग शिमला के डीएफओ शाहनवाज भट्ट ने बताया कि श्रीरेणुकाजी झील अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट की प्राकृतिक धरोहर झील है, जो कि वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत आती है। यहां पर नियमों अनुसार ही कार्य संपन्न होते हैं। उन्होंने बताया कि विभाग ने आस्था के साथ सामंजस्य बनाते हुए झील के संरक्षण व जलीय जीवों के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं। उन्होंने बताया कि झील में अकसर मछलियों के मरने के मामले सामने आते रहे हैं। झील में बढ़ती हुई गाद, खरतपरवार भी समस्या बनी हुई है, जो कि झील में अनावश्यक बाहरी दबाव व प्राकृतिक वातावरण से छेड़छाड़ का नतीजा है। लिहाजा रेणुकाजी झील में किसी भी तरह के बाहरी खाद्य पदार्थों को डालना बैन कर दिया गया है। गौर हो कि अंतरराष्ट्रीय रेणुकाजी झील में दुर्लभ गोल्डन महाशीर, अफरीकन केट फिश के अलावा चन्ना प्रजाति मछलियां मौजूद हैं, जबकि चार से पांच स्पीशीज के टर्टल झील में मौजूद हैं। इसके अलावा अन्य जलीय जीवों के अलावा प्रवासी पक्षियों का संरक्षण स्थली है, जिसका संरक्षण वैज्ञानिक पद्धति से किया जा रहा है। समय-समय पर आस्था व नियमों में रेणुकाजी में सामंजस्य की कमी के चलते टकराव की स्थिति पैदा करता है।
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