नई दिल्ली। दिल्ली में बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के लिए केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह पार्टी मुख्यालय पहुंचे।
भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति (CEC) की बैठक बुधवार शाम पार्टी के नई दिल्ली स्थित हेडक्वार्टर पर बुलाई गई है। मीटिंग में इस साल के अंत में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर बात होगी। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित सभी 15 CEC मेंबर्स के भाग लेने की उम्मीद है। पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। पार्टी इसी के लिए अपनी तैयारी तेज कर रही है। सूत्रों ने बताया कि बैठक में कमजोर सीटों पर पार्टी को मजबूत करने पर विचार-विमर्श किया जाएगा। बैठक में कैंडिडेट्स तय करने और प्रचार रणनीति पर भी चर्चा होने की संभावना है। पार्टी ने उन सीटों की एक सूची तैयार की है जिन पर उसे लगता है कि अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
सूत्रों ने कहा कि पार्टी का राज्य नेतृत्व केंद्र सरकार की वेलफेयर स्कीम्स को लोगों तक पहुंचने सहित जमीनी स्तर पर किए जा रहे कामों की जानकारी देगा। बैठक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा और अन्य प्रमुख नेता शामिल होंगे। इस साल के अंत में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से केवल मध्य प्रदेश में ही BJP सत्ता में है। आमतौर पर BJP अपने उम्मीदवारों की घोषणा तभी करती है, जब संबंधित राज्य में आचार संहिता लग जाती है और चुनाव की तारीख़ों का एलान हो जाता है। सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में BJP का कैडर बहुत मजबूत है, लेकिन बैठक में ऐसी सीटों पर विशेष रणनीति के तहत उम्मीदवारों का समय से पहले ही चयन करने पर बात हो सकती है। पार्टी यहां कैंडिडेट्स पर बात कर सकती है, जिससे इन सीटों पर तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।
बुधवार को होने वाली मीटिंग में माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश की करीब 60 से 70 और छत्तीसगढ़ की करीब 30 से 40 सीटों पर बात होगी। मध्य प्रदेश में BJP की सरकार है, लेकिन पिछले चुनाव की तरह परिणाम ना रहे, इसलिए भी BJP ने नई रणनीति के तहत उम्मीदवारों पर समय से पहले मंथन करने का निर्णय लिया है। BJP के आतंरिक सर्वे के अनुसार राज्य में प्रधानमंत्री मोदी या BJP संगठन को लेकर कोई नाराज़गी नहीं है, लेकिन लंबे समय से सरकार में रहने के कारण वोटिंग के समय उदासीनता का प्रभाव देखने को मिल सकता है।