भाजपा ने ओपीएस को लेकर कांग्रेस की मंशा पर उठाए सवाल

यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में क्यों नहीं लागू की पुरानी पेंशन.

Update: 2023-05-06 06:34 GMT
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली (आईएएनएस)| ओल्ड पेंशन स्कीम राज्य दर राज्य कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत के पीछे बड़ा कारण इसी ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने के वादे को माना जाता है। हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने के बाद अपने वादे के मुताबिक कांग्रेस ने इसे इस पहाड़ी राज्य में लागू भी कर दिया है। वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़, जहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकारें हैं और जिन दोनों राज्यों में इस वर्ष के अंत तक विधानसभा का चुनाव होना है वहां भी कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने इस पुरानी पेंशन स्कीम को लागू कर दिया है।
ओल्ड पेंशन स्कीम के महत्व को समझते हुए कांग्रेस ने इसे कर्नाटक के अपने चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया है। कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता में आने के बाद राज्य में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का वादा किया है। कांग्रेस की इस रणनीति से भाजपा की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। यह बिल्कुल साफ तौर पर नजर आ रहा है कि कांग्रेस 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक देशभर में इसे बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है और इसी के साथ भाजपा की दुविधा भी बढ़ती जा रही है।
ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर कांग्रेस के वादे पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस की मंशा पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र में दस साल तक इनकी सरकार रही (कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार) लेकिन इन्होंने उस दौरान (ओल्ड पेंशन स्कीम) लागू नहीं किया इसलिए पुरानी पेंशन योजना को लेकर कांग्रेस के जितने भी दावे हैं, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये इतने वर्षों तक केंद्र की सत्ता में रहे, कई जगह सत्ता में रहे लेकिन उन्होंने उस समय कुछ नहीं किया इसलिए उनकी किसी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भाजपा की केंद्र सरकार की तरफ से भी यह स्पष्ट किया जा चुका है कि अब देश में ओल्ड पेंशन स्कीम को फिर से लागू नहीं किया जाएगा और पुरानी पेंशन योजना की तरफ वापसी का सरकार का कोई इरादा नहीं है। लेकिन भाजपा को चुनाव भी लड़ना है और इसलिए सरकार इस मुद्दे के महत्व को भी बखूबी समझ रही है। भाजपा को राजनीतिक रूप से इसका बखूबी अहसास है कि अगर पेंशन के मुद्दे को सही ढंग से डील नहीं किया गया तो मध्य प्रदेश में वापसी में मुश्किलें आ सकती हैं और राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को हराने में दिकक्तों का सामना करना पड़ सकता है। सूत्रों की मानें तो पार्टी की तरफ से लगातार इस तरह का फीडबैक सरकार के साथ साझा भी किया जा रहा है।
केंद्र सरकार भी कांग्रेस की चुनावी रणनीति और इस मुद्दे के प्रभाव को बखूबी समझ रही है। शायद इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसी वर्ष मार्च में बजट सत्र के दौरान लोकसभा में दो दशक पुराने नेशनल पेंशन सिस्टम की समीक्षा के लिए वित्त सचिव टीवी सोमनाथन के नेतृत्व में एक कमेटी बनाने का ऐलान किया था। उस समय वित्त मंत्री ने यह दलील दी थी कि इस तरह की मांग आ रही है कि नेशनल पेंशन सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है और यह कमेटी आम नागरिकों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकारी खजाने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों की जरूरतों को पूरा करने के उपाय के बारे में विचार करेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि इन उपायों को इस तरह से डिजाइन किया जाएगा ताकि इसे केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें अपना सकें।
यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि भाजपा सरकार किसी भी सूरत में फिर से ओल्ड पेंशन स्कीम लाने के पक्ष में नहीं है लेकिन सूत्रों की माने तो वित्त सचिव टीवी सोमनाथन के नेतृत्व में बनी कमेटी के जरिए कोई ऐसा रास्ता निकाला जा सकता है जिससे पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग करने वालों को संतुष्ट किया जा सके। सरकार कांग्रेस के इस चुनावी मुद्दे की धार को कुंद करने के लिए नई पेंशन योजना को ही ज्यादा से ज्यादा लाभदायक और आकर्षक बनाने की योजना पर विचार कर रही है। हालांकि यह कब तक सामने आ पाएगा, यह फिलहाल तय नहीं है।
आपको बता दें कि, वर्ष 2004 में भाजपा के नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ही 1 अप्रैल, 2004 से पुरानी पेंशन योजना को समाप्त कर दिया था। उस समय एनडीए सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को समाप्त कर इसकी जगह पर राष्ट्रीय पेंशन योजना- एनपीएस की शुरुआत की थी। इसके बाद 2004 में ही हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार कर सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की विजय हुई थी और सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने से इंकार करने के बाद उनकी इच्छा पर मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने थे। पांच साल बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपीए गठबंधन ने दोबारा चुनाव जीत कर सरकार का गठन किया और इस तरह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन के नेता के तौर पर मनमोहन सिंह दस वर्ष तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे।
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