ज्ञानवापी मामले में बड़ा अपडेट आया

Update: 2022-08-24 10:51 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

वाराणसी: वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी केस की मेरिट को लेकर चल रही सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई। अब 12 सितंबर को अदालत इस पर फैसला सुनाएगी। उस दिन इस बात का फैसला हो जाएगा कि मामले की आगे सुनवाई जारी रहेगी या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वाराणसी के जिला जज की अदालत में केस की मेरिट पर सुनवाई में हिन्दू और मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें पेश की गईं।

पिछले वर्ष सिविल जज (सीनियर डिविजन) की अदालत में शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन व ज्ञानवापी को सौंपने सम्बंधी मांग को लेकर वादी राखी सिंह सहित पांच महिलाओं ने गुहार लगाई थी। प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने प्रार्थनापत्र देकर वाद की पोषणीयता पर सवाल उठाया। अदालत ने प्रतिवादी की अर्जी को दरकिनार करते हुए वादी की मांग पर सुनवाई की।
इसके बाद ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराकर रिपोर्ट तलब कर ली। इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मुस्लिम पक्ष की विशेष अनुमति याचिका पर उच्चतम न्यायालय के आदेश पर जिला जज की अदालत में सुनवाई चल रही है।
26 मई से शुरू सुनवाई में चार तिथि पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 07 नियम 11 (मेरिट) के तहत केस को खारिज करके लिए बहस की गई। इसके बाद हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व अन्य ने बहस की।
मंगलवार को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से ज्ञानवापी परिसर को वफ्फ की सम्पत्ति बताते हुए पक्ष में पत्रावली भी पेश की गई। वादी पक्ष के अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन के विशेष आग्रह पर सुनवाई बुधवार की सुबह 11.30 से शुरू हुई।
मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की पूरी बहस का सार यही रहा कि देश की आजादी के दिन ज्ञानवापी मस्जिद का जो धार्मिक स्वरूप था, वह आज भी कायम है। उसका धार्मिक स्वरूप अब बदला नहीं जा सकता है। ऐसे में शृंगार गौरी केस मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। लिहाजा ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मसले की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड को है।
इससे पहले मंगलवार को प्रतिवादी अधिवक्ता शमीम अहमद ने ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ की संपत्ति साबित करने के लिए संबंधित पत्रावलियां पेश कीं। बताया कि बादशाह आलमगीर ने ज्ञानवापी मस्जिद को दान में दिया था। यह प्रदेश शासन के गजट में सम्पत्ति दर्ज है। इससे साबित होता है कि ज्ञानवापी मस्जिद पुरानी है।
1944 में वाराणसी के तत्कालीन कमिश्नर ने वफ्फ सम्पत्तियों का जो नोटिफिकेशन जारी किया था, उसमें भी ज्ञानवापी मस्जिद है। उन्होंने वर्ष 1995 के वक्फ एक्ट का हवाला दिया कि प्रश्नगत वाद, जो ज्ञानवापी से सम्बन्धित है, वक्फ सम्पत्ति होने के कारण सिविल न्यायालय को सुनने का अधिकार नहीं है।
इसके समर्थन में दूसरे अधिवक्ता रईस अहमद ने 1995, 1960, 1936 के सेंट्रल वक्फ एक्ट का हवाला दिया। कहा कि वादी महिलाओं ने अब तक ऐसा साक्ष्य नहीं दाखिल किया है, जिसमें कहा गया हो कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति नहीं है।
प्रतिवादी अधिवक्ताओं ने कहा कि वादी ने पूजा के अधिकार की जो मांग की है, वह तार्किक नहीं है। मस्जिद वफ्फ की सम्पत्ति पर बनी है। ऐसे में यहां किसी देवता के होने की बात न कही जा सकती है और न ही यहां पूजा की अनुमति दी जा सकती है।


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