तबादले को लेकर पूर्व DGP का बड़ा बयान - टूट जाती है अफसरों का अहंकार, काले कारनामें का होता है उजागर

Update: 2021-07-03 16:34 GMT

पटना. बिहार (Bihar) में इस वक्त तबादले को लेकर सियासत गर्म है. मंत्री से लेकर विधायक तक अधिकारियों पर आरोप लगा रहे हैं कि अधिकारी मनमर्जी कर रहे है. मंत्री हो या विधायक कह रहे है कि अधिकारी अपनी मर्जी की करते है, किसी की नहीं सुनते है. जाहिर है इन आरोपों के बाद विरोधी पार्टियों को भी बड़ा मौक़ा मिल गया. सत्ताधारी दल को घेरने के लिए और नेता प्रतिपक्ष से लेकर तमाम विरोधी दल के नेता इस बहाने नीतीश सरकार पर हमला बोल रहे है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर तबादले को लेकर इतना हायतौबा क्यू मचता है? आखिर तबादले होते ही क्यू हैं? बिहार के पूर्व DGP और वरिष्ठ नौकरशाह अभयानंद ने तबादले पर बड़ा ही दिलचस्प राय दी है.

गंभीर प्रश्न है, सरकारी अफसरों का तबादला क्यों होता है? पुरानी परम्परा है? प्राकृतिक प्रक्रिया है? या इसके पीछे कोई गहरी सोच है? संविधान में भी हर पांच साल पर आम चुनाव कराए जाने का प्रावधान है. ऐसा क्यों? अगर एक बार प्रतिनिधि चुन लिया गया तो उसे आजीवन रहने क्यों नहीं दिया जाता? तबादले की आवश्यकता होती ही क्यों है?

अभयानंद कहते है कि एक सरकारी पदाधिकारी जब किसी एक स्थान पर दो सालों से अधिक रह जाता है तो वह मानसिक रूप से आश्वस्त हो जाता है और स्वाभाविक रूप से निश्चिंत हो जाता है कि वह उस स्थान पर अनंत काल के लिए रहने वाला है. इस परिस्थिति में गलती पर गलती करता जाता है, यह मान कर कि कोई अगला अफसर उस स्थान पर कभी नहीं आएगा जो उसकी गलतियों को उजागर कर सकेगा. यह सोच घातक है. धीरे-धीरे यह सोच अहंकार का रूप ले लेती है. अगर प्रत्येक दो वर्षों में तबादले होते रहे तो ऐसे अधिकारियों को एक स्थान पर जमा होने का मौका नहीं मिलेगा.

कई अन्य लाभ भी हैं तबादलों के. एक माहौल में रहने पर जड़ता का बोध होता है. किसी भी समस्या पर नए ढंग से सोचने की शक्ति भी कम हो जाती है. अगर छोटे से लेकर बड़े पदाधिकारियों पर तबादले की नीति लागू होती है तो सरकार में काम कर रहे जन प्रतिनिधियों पर भी इस नीति को लागू होना चाहिए. उनका कार्यकाल भी 5 वर्षों से अधिक का नहीं होना चाहिए, नहीं तो घोटालों की शृंखला बनती जाएगी.

बहती नदी में काई नहीं जमती.

अंग्रेजों ने एक स्वस्थ प्रशासनिक परम्परा बनाई थी जिसका नाम "निरीक्षण" था. IAS और IPS अफसरों से लगातार निरिक्षण करते रहने की अपेक्षा होती थी. यही कारण है कि पुलिस विभाग में वरीय पदनाम में इंस्पेक्टर शब्द रखा गया. समय के साथ यह परम्परा धराशायी हो गई. नीतिगत रूप से तबादला बहुत अच्छा प्रशासनिक कदम है, लेकिन अगर इसका दुरुपयोग होने लगे तो सर्वनाशी बन जाता है, जैसा वर्तमान में दिख रहा है. ये राय पूर्व DGP के हैं जिन्होंने तबादले पर हो रहे सियासत को देखते हुए लिखा है.


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