आरोपी को बड़ी राहत...नाबालिग लड़कों के कपड़े उतारने, गुप्तांगों को छूने के आरोप
धारा 377 यानी अप्राकृतिक अपराध समेत कई धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ था।
मुंबई: POCSO केस के एक आरोपी को हाईकोर्ट ने यह कहकर जमानत दे दी कि उसका यौन इरादा (Sexual Intent) नहीं था। आरोपी पर नाबालिग लड़कों के कपड़े उतारने, उनके गुप्तांगों को छूने और पूरी घटना का विडियो बनाने के आरोप लगे थे। साथ ही उसके खिलाफ धारा 377 यानी अप्राकृतिक अपराध समेत कई धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ था।
जस्टिस अनिल एस किलोर इस मामले की सुनवाई कर रहे थे। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, 'FIR और FIR में आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोपों को जांच के दौरान जुटाई गई सामग्री देखने के बाद प्रथम दृष्टया ऐसा कुछ भी नहीं लगता है कि यहां कोई यौन इरादा रहा हो। यह मामला नाबालिग पीड़ितों के साथ की गई शारीरिक और मानसिक यातना का है। आवेदक और अन्य सह आरोपी उन्हें चोर मानते थे।'
इस मामले में आरोपी कपिल सुरेश ताक ने कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दिया था। 30 अप्रैल 2021 को पीड़ित नाबालिगों में से एक की मां ने शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने एक वीडियो देखा, जिसमें उन्होंने पाया कि उनके बेटे और दो अन्य नाबालिग के साथ हिंसा की जा रही है। वीडियो में कथित तौर पर यह नजर आ रहा था कि आरोपियों ने बच्चों के कपड़े उतारने के बाद उनके साथ गलत व्यवहार किया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में सह आरोपी सचिन कथित तौर पर बच्चों के गुप्तांग पर लगाने के लिए झंडू बाम लेकर आया था। साथ ही उनपर गुप्तांगों को गलत तरीके से छूने के भी आरोप थे। जमानत के लिए आवेदन देने वाले कपिल ने कथित तौर पर घटना का वीडियो बनाया और पीड़ितों को धमकाया था।
खास बात है कि 3 मार्च 2022 को इससे पहले भी हाईकोर्ट की ही एक अन्य बेंच ने जमानत आवेदन को खारिज कर दिया था। तब जस्टिस सीवी भडंग ने जमानत देने से इनकार कर दिया था।
कपिल की ओर से कोर्ट पहुंचीं वकील सना रईस खान ने कहा कि यहां POCSO के प्रावधान नहीं लगते हैं, क्योंकि कोई सेक्सुअल इंटेंट शामिल नहीं है। उन्होंने कहा कि आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और आगे की कस्टडी की जरूरत नहीं है। जबकि, राज्य की ओर से पेश हुईं मीरा शिंदे और पीड़ित की वकील मेघना ने बेल का विरोध किया। आरोपी 1 मई 2021 से जेल में हैं।
जस्टिस किलोर ने FIR और जांच में मिली सामग्री के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया यौन इरादे के कोई सबूत नहीं मिले हैं और आरोपी 3 साल से कस्टडी में हैं। अदालत ने आवेदक को 50 हजार रुपये के पीआर बॉन्ड पर जमानत पर बेल देने के आदेश दिए।