महिला को बड़ा झटका, पति संग हो चुके तलाक को कैंसल करने पहुंची थी हाईकोर्ट

हाई कोर्ट ने उसकी याचिका नामंजूर कर दी।

Update: 2024-05-02 09:05 GMT
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट में एक महिला याचिका लेकर पहुंची कि उसके पति संग हो चुके तलाक को कैंसल किया जाए क्योंकि वह उसके साथ नई जिंदगी शुरू करना चाहती है लेकिन, हाई कोर्ट ने उसकी याचिका नामंजूर कर दी। अदालत ने टिप्पणी की कि पति और उसके परिवार के लोगों के खिलाफ झूठा केस दर्ज करना क्रूरता है। मामले में महिला के पति का आरोप है कि 8 साल शादी में साथ रहने के बाद अचानक उसकी बीवी मायके रहने लगी थी। उसने उसके परिवार के खिलाफ कई झूठी कंप्लेन दर्ज कराई। ससुर और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ तक के आरोप लगाए। इससे उनकी काफी बदनामी हुई।
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। महिला ने अपनी याचिका में वैवाहिक अधिकारों को बहाल किए जाने का अनुरोध किया था और पारिवारिक अदालत के फरवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें तलाक की मंजूरी दी गई थी क्योंकि पति ने अपनी पत्नी की क्रूरता और उसके अलग हो जाने के आधार पर तलाक मांगा था।
हाई कोर्ट ने 25 अप्रैल को यह आदेश सुनाया, जिसकी प्रति बीते मंगलवार को उपलब्ध कराई गई। न्यायमूर्ति वाई जी खोबरागड़े ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही शुरू करना और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करना अपने आप में क्रूरता नहीं है। उन्होंने कहा, "लेकिन, पति, उसके पिता, भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ पुलिस के पास विभिन्न झूठी, आधारहीन रिपोर्ट दर्ज करना निश्चित रूप से क्रूरता के दायरे में आता है।"
इस जोड़े की 2004 में शादी हुई और 2012 तक वे साथ रहे। पति का दावा है कि 2012 में उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया और अपने माता-पिता के घर में रहने लगी। बाद में महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज करायी। पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ पारिवारिक अदालत में दायर याचिका में दावा किया कि इन झूठी शिकायतों के कारण उसे और उसके परिवार के सदस्यों को मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा। पति ने दावा किया था कि उसकी पूर्व पत्नी ने उनके पिता और भाई के खिलाफ छेड़छाड़ करने तक का आरोप लगाया।
बाद में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया लेकिन उस व्यक्ति ने कहा कि इस पूरे मामले से उसके परिवार के सदस्यों को परेशानी हुई और समाज में काफी बदनामी हुई। हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी और कहा कि तलाक मंजूर करने के निचली अदालत के आदेश में कोई गड़बड़ी या अवैधता नहीं है।
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