खतरनाक होते हैं पिटबुल कुत्ते? पेटा इंडिया ने कही ये बात

Update: 2022-09-14 08:39 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक  | DEMO PIC 

नई दिल्ली: देशभर में पालतू पिटबुल कुत्तों के हमलों का मामला गरमाया हुआ है. एक के बाद एक कई शहरों से इस तरह के मामले सामने आए हैं. मेरठ में पिटबुल के हमले में गंभीर रूप से घायल एक लड़की की खबर सामने आने के दो महीने बाद पंजाब में 13 साल के बच्चे का कुत्ते ने कान काट लिया. गुरुग्राम में भी पिटबुल ने एक महिला पर हमला किया जबकि लखनऊ में पिटबुल ने खुद की मालकिन को नोंच डाला. गाजियाबाद में ऐसी ही एक घटना पर एक बच्चे को 100 से ज्यादा टांके आए. लेकिन सवाल ये है कि आखिर कुत्तों की पिटबुल ब्रीड इतनी हिंसक क्यों है? देश में बढ़ रहे इन मामलों की वजह से पेटा इंडिया (People For The Ethical Treatment of Animals) ने पशुपालन मंत्रालय और राज्य सरकारों को पत्र लिखकर पिटबुल जैसे ब्रीड पर बैन की मांग की है.

पेटा इंडिया की प्रोग्राम मैनेजर राधिका सूर्यवंशी का कहना है कि पिटबुल को इसलिए ब्रीड किया जा रहा है ताकि डॉग फाइटिंग में इनका इस्तेमाल किया जा सके. इन्हें गार्ड डॉग के तौर पर घरों में रखा जाता है. इन्हें जिस तरह की ट्रेनिंग दी गई है, ये ठीक वैसा ही बिहेव करते हैं.
केरल के एर्नाकुलम के एक अस्पताल से मिली रिसर्च बताती है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा डॉग बाइट के मामले पालतू जानवरों के थे, ना कि स्ट्रे एनिमल्स या कम्युनिटी एनिमल्स के. डॉग ट्रेनर ये मानते हैं कि पालतू कुत्तों को एक्सरसाइज, अच्छे फूड की जरूरत होती है. हिदायत यह भी दी जाती है कि अगर आप घर में पालतू कुत्ता लाना चाहते हैं तो उसे एडॉप्ट कीजिए ना की खरीदिए. क्योंकि ये विदेशी कुत्ते भारत के मौसम के प्रतिकूल होते हैं, उनकी अलग डिमांड और जरूरतें होती हैं. कम्युनिटी एनिमल्स में डॉग बाइट के मामले इसलिए देखने को मिलते हैं क्योंकि एरिया में उनकी आबादी बढ़ने से प्रजनन या टेरिटरी के लिए उनके बीच झगड़े होते हैं इसलिए उनके गुस्सा रहता है लेकिन sterilization (नसबंदी) इसका उपाय है.

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लखनऊ की घटना के बाद अवैध ब्रीडर्स के खिलाफ कारवाई हो रही है. कवायद हो रही है कि हर ब्रीडर स्टेट के साथ रजिस्टर हो. स्टरेलाइजेशन से ना केवल कुत्तों की संख्या कम होगी बल्कि दूरगामी तरीका यही है कुत्तो का गुस्से कम हो जाएगा. ब्रीडर कुत्तों की नसबंदी नहीं की जाती. कुत्तों का खाना-पीना, उनकी हाइजीन किसी भी चीज पर ध्यान नहीं दिया जाता. ब्रीडर केवल अपना मुनाफा देखता है.
पेटा इंडिया ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कुत्तों के बीच अवैध तरीके से कराई जाने वाली लड़ाई पर रोक लगाने की मांग की है. आरोप है कि देशभर में अवैध कुत्तों की दुकानें चल रही हैं. पेटा इंडिया के वेटेरनरी पॉलिसी एडवाइजर नितिन कृष्णगौड़ा ने सरकार से इस पर रोक की मांग की.
दिल्ली नगर निगम के एक अधिकारी का कहना है कि बीते दस साल में छह लाख कुत्तों की नसबंदी की गई है. 2012 से लेकर 2021 के बीच रेबीज टीकाकरण पर दस करोड़ से ज्यादा खर्च हो गए. दिल्ली में करीब 18 नसबंदी सेंटर हैं. पिछले साल 82,291 कुत्तों की नसबंदी हुई थी. दिल्ली नगर निगम के एकीकरण से पहले 2012 में दक्षिण निगम, उत्तरी निगम और पूर्वी निगम ने करीब 23,345 कुत्तों की नसबंदी की थी, जबकि 2013-14 में 25,879 कुत्तों की नसबंदी हुई थी.
2014-15 में कुत्तों की नसबंदी करने का सिलसिला बढ़ता गया. वर्ष 2015-16 में 37,990 , वर्ष 2016-17 में 44,635, 2017-18 में 83,656, वर्ष 2018-19 में 88,175, 2019-20 में 99,997, वर्ष 2020 -2021 में 51,990 कुत्तों की नसबंदी की गई.
निगम के अनुसार, 2021 में कोरोना के चलते नसबंदी कम हुई. 2021-2022 में 82, 291 और 2022-23 जुलाई माह तक 26,888 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है.
दिल्ली विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, उत्तरी निगम ने 2012 से लेकर 2021 के बीच रेबीज टीकाकरण पर दस करोड़ 58 लाख रुपये खर्च किये. इसके अलावा दक्षिण दिल्ली निगम ने 25 करोड़ रुपये से अधिक की रकम खर्च की थी. डॉग नियम 2001 के तहत राजधानी के 12 जोन में कुत्तों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए 18 नसबंदी सेंटर चलाए जा रहे हैं. नगर निगम कुत्ते और छोटे जानवरों का अंतिम संस्कार करने के लिए द्वारका में सीएनजी शवदाह गृह बनाने की तैयारी कर रहा है.
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