बिल्डर से सपनों का घर मिलना एक अंतहीन प्रतीक्षा, टूटे वादों और निराशा की गाथा जारी

अपने जीवन की गाढ़ी कमाई लगाकर अपने सपनों का घर लेना आज के समय में लोगों का एक सबसे बड़ा सपना बन गया है।

Update: 2023-08-26 08:45 GMT
ग्रेटर नोएडा: नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अपने जीवन की गाढ़ी कमाई लगाकर अपने सपनों का घर लेना आज के समय में लोगों का एक सबसे बड़ा सपना बन गया है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रियल एस्टेट को देखें तो एक निराशाजनक तस्वीर सामने आती है। इस तस्वीर में साफतौर पर देखने को मिलता है कि हजारों घर खरीददार धोखे और टूटे वादों के जाल में फंस गए हैं। इतना ही नहीं जैसे-तैसे खरीददार अपना भुगतान करके अपने घर को पा भी लेते हैं तो इन्हें पता चलता है कि जो सब्जबाग इन्हें दिखाए गए थे, वह यहां मौजूद ही नहीं हैं।
जो सुविधा फ्लैट बेचते समय बिल्डर ने इन्हें चमकते-दमकते ब्रोशर में दिखाई थी। वह सोसाइटी में अभी तक बनी ही नहीं है। लिफ्ट अटक-अटक कर चलती है। स्विमिंग पूल है, जिसमें पानी ही नहीं है। क्लब है, लेकिन सिर्फ उसका बोर्ड लगा है।
लेकिन, सबसे बड़ी बात है कि इसकी जवाबदेही किसकी होगी। इसकी जवाबदेही सरकारों, प्राधिकरणों, बिल्डरों और उन सभी वित्तीय संस्थानों पर होगी, जिन्होंने आम जनता को अपने झूठे वादों में फंसा लिया और फिर उन्हें तड़पने को छोड़ दिया।
तीन सरकारें आई और गई, समस्या जस की तस है :-
पिछले कई सालों में उत्तर प्रदेश में तीन सरकारी आई और गई, रियल एस्टेट संकट के समाधान का वादा जरूर मिला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
योगी सरकार के आने के बाद रेरा को अस्तित्व में लाया गया। लोगों ने माना कि यह एक आशा की किरण है, जो उनके सपनों का घर उन्हें दिलाएगा और उनके साथ इंसाफ होगा।
रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने कोशिश जरूर की। लेकिन, कुप्रबंधन और अधूरी प्रतिबद्धताओं को रोकने में वह भी अप्रभावी साबित हुआ है। हाल ही में अमिताभ कांत की अध्यक्षता वाली समिति के आने के बाद लोगों को फिर से एक आशा की किरण दिखाई दी है। हालांकि, स्थिति अभी भी जस है।
अधिकारियों की उदासीनता और बिल्डरों के प्रति उनका मोह आम जनता के हितों की रक्षा करता हुआ नहीं दिखाई दे रहा। जिन बिल्डरों ने हेरा-फेरी की एक परियोजना का धन दूसरी परियोजना में लगाया और धन को इधर-उधर किया, वह आज भी आराम से मजे की जिंदगी जी रहे हैं और अब उसे अटकी परियोजना को पूरा करने की सुध नहीं है। यह सिलसिला पिछले 15 सालों से ऐसे ही चलता आ रहा है।
रजिस्ट्री के इंतजार में 2.5 लाख से ज्यादा होमबायर :-
नोएडा प्राधिकरण, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और यमुना प्राधिकरण की अगर बात करें तो तीनों प्राधिकरण के अब तक डिलीवर किए गए प्रोजेक्ट के करीब 2.5 लाख होम बायर्स रजिस्ट्री करवाने के इंतजार में परेशान है।
लेकिन, अथॉरिटी के मुताबिक जब तक बिल्डर अपना बकाया राशि, जो अथॉरिटी पर निकलती है, उसे नहीं चुकाते तब तक रजिस्ट्री करवाने की छूट बहुत बड़ी गलती होगा।
प्राधिकरणों के मुताबिक अगर एक बार जनता ने रजिस्ट्री करानी शुरू कर दी और अथॉरिटी ने इसकी छूट दे दी तो फिर बिल्डर से बकाया राशि निकाल पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
प्राधिकरणों के मुताबिक बिल्डर ने शुरुआती तौर पर 10 प्रतिशत जमीन की कीमत देकर उस पर अपने प्रोजेक्ट बना लिए और जब बाकी की कीमत देने का वक्त आया तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। ओसी मिलने के बाद बिल्डरों ने लोगों को फ्लैट देने भी शुरू कर दिए।
इस वक्त लीज डीड भी नहीं करवाई गई और ना ही जमीन की बची हुई पेमेंट की गई। इसीलिए प्राधिकरणों ने फ्लैट रजिस्ट्री पर रोक लगा दी।
बड़े बड़े बिल्डर नामों ने तोड़ा आम जनता का भरोसा :-
आम्रपाली, जेपी, सुपरटेक, अजनारा यूनिटेक, जैसे कई बड़े नाम हैं, जिन्होंने आम जनता के सपनों को पूरी तरीके से चकनाचूर कर दिया और भरोसा भी तोड़ दिया।
इन बिल्डरों की खराब पोजीशन और प्रोजेक्ट को सही समय पर डिलीवर न करने के चलते ही फ्लैट बायर और बिल्डर के बीच उत्पन्न हुई समस्याओं को जन्म दिया है।
इनमें सिर्फ आम्रपाली के केस में ही सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कुछ महत्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है वरना तो एनसीएलटी और आरपी की नियुक्ति से प्रोजेक्ट में कोई खास फर्क देखने को नहीं मिला है।
फ्लैट बायर्स ने कई ग्रुप बनाकर कई महीनो तक प्रोटेस्ट किया और अपने केस लड़ना शुरू किया है। लेकिन, अभी भी ईएमआई की मार, घर का किराया और परिवार को पालने की जिम्मेदारी की तिहरी मार झेल रहा आम आदमी इन मामलों से दूर भागना चाहता है।
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