इलाहाबाद HC: विवाहित पुत्री नहीं है अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार, खंडपीठ ने पलटा एकल पीठ का फैसला
विवाहित पुत्रियां अब अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं होंगी।
विवाहित पुत्रियां अब अनुकंपा नियुक्ति पाने की हकदार नहीं होंगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल न्यायपीठ के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें विवाहित पुत्री को परिवार का सदस्य मानते हुए अनुकंपा नियुक्ति पाने का हकदार माना गया था। खंडपीठ ने कहा है कि विवाहिता पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं हैं। राज्य सरकार ने एकल न्यायपीठ के फैसले के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की थी। अपील पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने सुनवाई की।
खंडपीठ ने विवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति की हकदार न मामने की तीन वजहें बताई हैं। पहली यह कि शिक्षण संस्थाओं के लिए बने रेग्यूलेशन 1995 के तहत विवाहिता पुत्री परिवार में शामिल नहीं है। द्वितीय आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती। याची ने छिपाया कि उसकी मां को पारिवारिक पेंशन मिल रही है। वह याची पर आश्रित नहीं है और तीसरे कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहिता पुत्री अपने पति की आश्रित होती है, पिता की आश्रित नहीं होती।
याचिकाकर्ता माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर विमला श्रीवास्तव केस के आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की। याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई। एकलपीठ ने याची को अनुकंपा नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया। इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुभाष राठी का कहना था कि मृतक आश्रित विनियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम 1904, इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम व 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर, पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है।
1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली सरकारी सेवकों के लिए है। यह शिक्षण संस्थाओं की नियुक्ति पर लागू नहीं होती। एकलपीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति का आदेश दिया है। वैसे भी सामान्य श्रेणी का पद खाली नहीं है। मृतक की विधवा पेंशन पा रही है। जिला विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इंकार कर गलती नहीं की है। याची अधिवक्ता का कहना था कि सरकार ने कल्याणकारी नीति अपनाई है। विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने पुत्र-पुत्री में विवाहित होने के आधार पर भेद करने को असंविधानिक करार दिया है और नियमावली के अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है। मान्यता प्राप्त एडेड कालेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली है तो सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होगी।