भारतीय प्रस्ताव का अमेरिकी समर्थन के बाद वैक्सीन पर ट्रिप्स बंधन समाप्त करने का है मामला
कोविड-19 वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों से बाहर रखने के भारतीय प्रस्ताव का अमेरिका ने तो समर्थन कर दिया है
कोविड-19 वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों से बाहर रखने के भारतीय प्रस्ताव का अमेरिका ने तो समर्थन कर दिया है लेकिन अभी भी कई अमीर देश इसके खिलाफ लामबंद होते दिख रहे हैं। अमेरिका व यूरोप की फार्मा कंपनियों की मजबूत लॉबी इस प्रस्ताव की राह में खड़ी होती दिख रही हैं। ऐसे में भारत ने भी इसको लेकर अपनी कूटनीतिक सक्रियता बढ़ा दी है। शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने जब ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मोरिसन से बात की तो इस बारे में उनका समर्थन मांगा। उधर, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को जापान और ब्रिटेन के विदेश मंत्रियों के साथ अपनी वार्ता में भी इस मुद्दे को उठाया है।
जानकारों का कहना है कि शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी की यूरोपीय संघ के सभी देशों के प्रमुखों के साथ होने वाली शिखर बैठक में भी यह मुद्दा उठेगा। यूरोपीय संघ की तरफ से तो कहा गया है कि वह भारत व दक्षिण अफ्रीका के इस प्रस्ताव पर विचार करेगा लेकिन यूरोपीय संघ के कई शक्तिशाली देश इस प्रस्ताव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। असलियत में यूरोपीय संघ को ही सबसे बड़ी अड़चन के तौर पर देखा जा रहा है। चूंकि कोविड-19 वैक्सीन को पेटेंट दायरे से बाहर रख कर दूसरी वैक्सीन निर्माता कंपनियों को भी इसके निर्माण की छूट मिलेगी या नहीं, इसका फैसला विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सर्वसहमति से होगा। इसको पारित करवाने के लिए हर देश का समर्थन चाहिए। भारत समझता है कि इस प्रस्ताव को अफ्रीका, लैटिन अमेरिकी और एशिया के लगभग सभी सदस्य देशों का समर्थन मिल जाएगा लेकिन असली समस्या ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और कुछ यूरोपीय देशों से आ सकती है। यही वजह है कि भारत ईय़ू को मनाने पर खास ध्यान दे रहा है।
अमेरिका से मिला समर्थन एक बड़ी उपलब्धि
भारत की इस रणनीति के बारे में सरकारी सूत्रों का कहना है कि अमेरिका से मिला समर्थन एक बड़ी उपलब्धि है लेकिन जिस उद्देश्य से भारत कोविड-19 वैक्सीन को ट्रिप्स से अलग करने की मांग कर रहा है उसे पूरा करने में लंबी दूरी तय करनी होगी। पूर्व में हम देख चुके हैं कि डब्ल्यूटीओ में इस तरह के प्रस्तावों पर सहमति बनाने में महीनों या वर्षों लग जाते हैं। इस बार हमारे पास समय नहीं है। दूसरा, डब्ल्यूटीओ में फैसला होने के बाद भी देश के भीतर वैक्सीन उत्पादन का ढांचा तैयार करने या एक देश से दूसरे देश को आपूर्ति करने जैसे तमाम मुद्दों को सुलझाना होगा। दुनिया में गिने-चुने देशों के पास ही वैक्सीन निर्माण करने की क्षमता है और अभी इस क्षमता से ज्यादा का इस्तेमाल हो रहा है। दुनिया की तकरीबन 60 फीसद वैक्सीन बनाने वाले भारत का दायित्व बढ़ जाएगा।