नई दिल्ली: दुनियाभर के वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) को लेकर लगातार चेतावनी दे रहे हैं, वहीं अभी भी अधिकांश लोग इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं. धरती की हालत पर उठ रहे सवालों के बीच कई देश जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं. इसी सोच के साथ कमाई की आस में उत्तराखंड (Uttarakhand) के एक पूर्व सरकारी अधिकारी की मेहनत रंग लाई तो एक बेशकीमती जंगल तैयार हो गया.
सामान्य उपजाऊ जमीन जंगल में बदली तो फलों की पैदावार के हिसाब से इतना फली फूली कि जिससे भारतीय रेलवे के दिग्गजों की सांसे फूल गईं. दरअसल एक रेल प्रोजेक्ट को लेकर जब इस जमीन की कीमत का हिसाब किताब हुआ तो मानो रेलवे अधिकारियों के पसीने छूट गए. यहां बात अनिल जोशी की मेहनत से जुड़ी जिन्होंने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के रूट पर 10 लाख पौधे लगाकर जंगल बसा दिया है. यानी साफ है कि अगर रेलवे को नई लाइन बिछाने के लिए उन्हें काटना हो तो उसे 400 करोड़ का मुआवजा देना होगा. जो व्यक्तिगत तौर पर शायद पूरे देश में ये सबसे बड़ी मुआवजा राशि होगी. इसलिए बात अब मुआवजे के लिए बने ट्रिब्यूनल तक पहुंच गई है.
दैनिक भाष्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक करीब 10 साल पहले भारतीय रेलवे (Indian Railway) ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सर्वे के दौरान मथेला में एक बड़ा रेलवे स्टेशन बनाने का फैसला किया था. इस लाइन की जद में पूर्व सरकारी अधिकारी अनिल किशोर जोशी की जमीन भी आ गई. जिन्होंने 34 लोगों की उपजाऊ भूमि को बाकायदा एक एग्रीमेंट के तहत लेकर वहां सात लाख शहतूत और तीन लाख अन्य फलों के पौधे लगाए. अब वो सब पेड़ बन चुके हैं और इसके बाद मामला ऐसा फंसा कि रेलवे का काम ठप पड़ा है.
इस जंगल को बसाने वाले अनिल जोशी और उनके मित्र और परिजन इसे क्षेत्र का पहला मैन मेड फॉरेस्ट बताते हैं. बात नहीं बनी तो मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा.
दरअसल गिनती के बाद जोशी के जंगल में 7 लाख से ज्यादा शहतूत के और बाकी 3 लाख में कुछ संतरे, आम और अन्य फलों के पेड़ है. नियम के अनुसान जिसकी जमीन होती है मुआवजा उसे ही मिलता है. नियमों के तहत एक फलदार पेड़ खासकर संतरे के प्लांट की कीमत 2196 रुपये बनती है इस तरह से उनकी बगीचे का मुआवजा चार सौ करोड़ बैठता है. बात इसलिए हाई कोर्ट तक पहुंची क्योंकि रेलवे ने शहतूत को फलदार वृक्ष नहीं माना और प्रति पेड़ उसके साढ़े चार रुपये लगाए. इसके बाद जोशी हाई कोर्ट पहुंचे तो सुनवाई के दौरान जज ने उद्धान विभाग से पूछा कि क्या शहतूत के पेड़ को फलदार माना जा सकता है तो विभाग ने उसे फलदार वृक्ष माना. यानी उसका मुआवजा भी बाकी फलदार प्लांट के बराबर होगा. फिलहाल मामला ट्राइब्यूनल में हैं जिसमें जज अभी नियुक्ति नहीं हुए हैं. इसलिए मामला फंसा हुआ है.