गंगा नदी के घाटों में पानी का रंग हुआ हरा, पर्यावरण को लेकर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में पिछले कुछ दिनों से गंगा नदी का पानी हरा दिखने लगा है

Update: 2021-05-28 17:20 GMT

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) जिले में पिछले कुछ दिनों से गंगा नदी (Ganga River) का पानी हरा दिखने लगा है. पानी के रंग में परिवर्तन स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े लोगों के लिए और भी अधिक चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है. पिछले साल कोरोना काल की पहली लहर के दौरान, गंगा का पानी मुख्य रूप से साफ हो गया था. इसका मुख्य कारण कम प्रदूषण होना था.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) में मालवीय गंगा अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष डॉ बी.डी त्रिपाठी के अनुसार, "नदी की हरी भरी उपस्थिति माइक्रोसिस्टिस शैवाल के कारण हो सकती है. उन्होंने कहा है कि शैवाल बहते पानी में पाए जा सकते हैं. लेकिन यह आमतौर पर गंगा में नहीं देखा जाता है. इसलिए जहां भी पानी रुक जाता है और पोषक तत्वों की स्थिति बन जाती है. इससे माइक्रोसिस्टिस बढ़ने लगते हैं. इसकी विशेषता यह है कि यह तालाबों और नहरों के पानी में ही उगता है.
गंगा नदी में पोषक तत्वों के चलते दिखे शैवाल
वैज्ञानिकों के मुताबिक' पानी जहरीला हो सकता है और इसकी जांच की जानी चाहिए कि क्या हरा रंग अधिक समय तक बना रहता है. पर्यावरण प्रदूषण वैज्ञानिक डॉ कृपा राम ने कहा है कि गंगा में पानी में पोषक तत्वों की वृद्धि के कारण शैवाल दिखाई देते हैं. उन्होंने बारिश को भी गंगा नदी के पानी के रंग बदलने का एक मुख्य कारण बताया है.
नदी के पानी में न्यूट्रिएंट्स की मात्रा बढ़ी
वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम ने बताया कि गंगा में हरे शैवाल तब ज्यादा दिखते है जब न्यूट्रिएंट्स बढ़ जाता है. यह बारिश की वजह से उपजाऊ भूमि से बहकर आया पानी गंगा में मिलता है. फिर अच्छी मात्रा में न्यूट्रिएंट्स मिलने से फोटोसिंथेसिस करने लगता है. न्यूट्रिएंट्स में मुख्य रूप से फॉस्फेट, सल्फर और नाइट्रेट के मिलते ही हरे शैवाल की मात्रा बढ़ जाती है. अगर पानी स्थिर होता है और साफ रहता है तो सूर्य की किरणें पानी के अंदर तक जाती हैं. उसकी वजह से फोटोसिंथेसिस बढ़ जाती है.
पानी के इस्तेमाल से हो सकता है त्वचा रोग
वाराणसी के एक दो घाटों पर नहीं बल्कि 84 घाटों में से ज्यादातर पर गंगा का पानी हरा हो चुका है. वैज्ञानिक ने कहा कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और आम तौर पर मार्च और मई के बीच होती है. हालांकि, चूंकि पानी जहरीला हो जाता है. इसमें नहाने से शरीर में त्वचा रोग हो सकते हैं और इस पानी को पीने से लीवर को नुकसान हो सकता है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक पानी के नमूनों का हो परीक्षण
इस दौरान स्थानीय निवासियों का दावा है कि यह पहली बार है जब गंगा इतनी हरी हो गई है. एक वृद्ध अजय शंकर ने कहा कि लगभग पूरी नदी का रंग बदल गया है और पानी से बदबू आ रही है. वैज्ञानिकों के किसी सामान्य नतीजे पर पहुंचने से पहले पानी के नमूनों का अच्छी तरह से परीक्षण किया जाना चाहिए.


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