बंगालियों को जंची मसूर की दाल, किसानों संग मंडी भी मालामाल

यहां पैदा होने वाली छोटे दाने वाली मसूर अब बंगालियों की पसंद बन गई है।

Update: 2022-05-16 18:47 GMT

बलरामपुर : यहां पैदा होने वाली छोटे दाने वाली मसूर अब बंगालियों की पसंद बन गई है। इसका फायदा न केवल उत्पादक किसानों व दाल छटाई के लिए मिल लगा रखे उद्यमियों को बल्कि मंडी समिति को भी मिल रहा है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में बड़े दाने वाली मसूर पैदा होती है, लेकिन बलरामपुर में छोटे दाने की मसूर का स्वाद इन सबसे अलग है। इसका जायका दाल प्रेमियों को दीवाना बना देता है। यही कारण है कि बलरामपुर से आई मसूर की दाल बंगाल में अधिक पसंद की जा रही है। वहां के पसंदीदा व्यंजन कबाब में छोटी मसूर व उसकी दाल का प्रयोग अधिक करते हैं। यहां के व्यापारियों ने इस साल जिले के किसानों से 4643 क्विंटल मसूर खरीदी है। 15400 क्विंटल मसूर बाहर से छांटी (मसूर का छिलका उतारकर चमकदार बनाने की प्रक्रिया) के लिए मंगाई गई है। यहां छांटी मसूर व उसकी दाल बनाने के लिए आठ से 10 मिले हैं जो बाहर से खरीदकर दूसरे प्रांतों में निर्यात करती हैं। मंडी समिति सचिव प्रवीण कुमार ने बताया कि इस साल 20 हजार क्विंटल से अधिक छांटी मसूर व दाल कोलकाता,पश्चिम बंगाल समेत विभिन्न जगहों पर भेजी गई है। इससे साढ़े तीन लाख रुपये का मंडी शुल्क मिला है।

मसूर को गन्ने का विकल्प देना चाह रहा प्रशासन : यहां की मसूर पहले बांग्लादेश तक जाती थी, लेकिन 2008 में रोक लगा देने के बाद उद्यमियों को मसूर के बाजार की तलाश थी। अब पश्चिम बंगाल के रूप में मिल गया है। इसकी खेती के लिए वैसे जिला प्रशासन भी मुफ्त बीज समेत अन्य सुविधाएं दे रहा है। इसका कारण यह भी है कि जंगलवर्ती गांवों में गन्ने व अरहर के खेतों में तेंदुआ, लकड़बग्गा व नीलगाय छिप जाते हैं। जिला कृषि अधिकारी डा. आरपी राणा ने बताया कि जंगलवर्ती गांवों में मसूर खेती के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है।


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