बड़ा सवाल: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद से नेताओं में बढ़ी निराशा

पश्चिम बंगाल में भगवा ध्वज लहराने के लिए भाजपा ने पिछले साल साम, दाम, दंड, भेद जैसे सभी फार्मूले अपनाए थे

Update: 2022-05-24 08:22 GMT

पश्चिम बंगाल में भगवा ध्वज लहराने के लिए भाजपा ने पिछले साल साम, दाम, दंड, भेद जैसे सभी फार्मूले अपनाए थे, लेकिन चुनाव के बाद से ही लगातार उसके सभी फार्मूले बैक फायर कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में मुकुल राय ने विधानसभा चुनाव के बाद घर वापसी कर ली थी। राय पर भाजपा को बड़ा भरोसा था। ताजा मामला अर्जुन सिंह का है। अर्जुन सिंह बैरकपुर से आते हैं। सांसद हैं। तृणमूल कांग्रेस के तेज तर्रार, दबंग नेता माने जाते हैं। भाजपा में आए थे और अब तृणमूल कांग्रेस में घर वापसी कर ली है। प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हमने तो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। जो आए थे, वह जा रहे हैं और जो हमारे थे, अब वह भी बुरी तरह से हताश और निराश हैं।

भाजपा के नेता और तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर आए शुवेंदु अधिकारी का राजनीतिक कौशल भाजपा नेताओं को कम रास आ रहा है। भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शुवेंदु की राजनीतिक शैली पश्चिम बंगाल भाजपा नेताओं में नहीं चल पा रही है। वह तृणमूल के स्कूल के विद्यार्थी हैं। मुकुल राय और अर्जुन सिंह भी ऐसे ही थे। 24 परगना के एक भाजपा नेता का कहना है कि जब अर्जुन सिंह को भाजपा में शामिल किया गया था, तो हमने पार्टी के फोरम पर विरोध किया था। क्योंकि अर्जुन सिंह और उनके समर्थकों ने तृणमूल में रहने के दौरान हमारे नेताओं, कार्यकर्ताओं की खूब पिटाई की थी। लेकिन तब हमारी किसी ने नहीं सुनी। अब वही अर्जुन सिंह वापस तृणमूल कांग्रेस में लौट गए हैं।
अग्निमित्रा पॉल कहती हैं कि शुवेंदु दा बहुत काम कर रहे हैं। वह भाजपा को खड़ा करने में लगे हैं, लेकिन तृणमूल से आए लोगों के वापस लौटने के सिलसिले से विश्वास का संकट भी खड़ा हो जाता है। वह कहती हैं कि जबतक अर्जुन सिंह भाजपा में थे, उन्होंने तृणमूल के अभिषेक बनर्जी को बुरा भला कहा। अब देखना है कि तृणमूल में जाकर क्या बोलते हैं? यह भी देखना है कि क्या उनके लोग भाजपा नेताओं को फिर टारगेट करेंगे? अग्निमित्रा का कहना है कि जो भी भाजपा छोड़कर तृणमूल में जा रहे हैं, वह तृणमूल से ही आए थे। पुराना भाजपा का कार्यकर्ता हर संघर्ष के साथ पार्टी में बना हुआ है।
वरिष्ठ नेता राजकमल पाठक कहते हैं कि जमाई से घर नहीं चलता। दिल्ली के नेताओं ने भाजपा के पुराने नेताओं को घर बैठा दिया है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष के पास अनाप-शनाप बकने के सिवा कुछ नहीं बचा है। मेरा अब भी कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को पश्चिम बंगाल की यथा स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
अब तक कई बड़े नेताओं ने थामा तृणमूल का दामन
भाजपा नेता और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने विधानसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही घर वापसी की थी। भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कैंप में गिना जाता था। सुप्रियो भी भाजपा छोड़कर जा चुके हैं। सुप्रियो के अलावा पांच भाजपा के विधायकों ने भी पार्टी से इस्तीफा देकर तृणमूल का दामन थाम लिया है। ताजा मामला अर्जुन सिंह का है। अर्जुन सिंह विधायक थे। भाजपा में आए तो उन्हें लोकसभा का टिकट मिला सांसद बने और अब तृणमूल में लौट गए हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि प्रदेश सरकार के दबाव के आगे मजबूर होकर अर्जुन सिंह को घर वापसी करनी पड़ी है।
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में दिखाई देगा असर
अगले ही साल मार्च में त्रिपुरा विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हमें तो नहीं लगता कि हम सत्ता में लौटेंगे? मंत्री, नेता, कार्यकर्ता सभी में निराशा है। बिप्लब कुमार देब को मुख्यमंत्री पद से हटाने की वजह भी यह नाराजगी ही है। डा. माणिक सरकार भले नए मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन राह आसान नहीं है। भाजपा की एक वरिष्ठ नेत्री का कहना है कि क्षेत्रीय राजनीति में राष्ट्रीय राजनीति का जरूरत से ज्यादा दखल बढ़ने पर ऐसा ही होता है। पश्चिम बंगाल के असर से त्रिपुरा की राजनीति अछूती नहीं रह सकती है। इसे केन्द्रीय नेतृत्व को भी समझना चाहिए।
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