योगगुरु बाबा रामदेव बोले- कोई गृहस्थी नहीं केवल संन्यासी होगा पतंजलि योगपीठ का ट्रस्टी
योगगुरु बाबा रामदेव ने कही ये बात
हरिद्वार : योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा है कि भविष्य में दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) और पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) का ट्रस्टी कोई गृहस्थी नहीं अपितु केवल संन्यासी ही होगा। यह बात उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी मुक्तानंद महाराज की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में कही।
रविवार को पतंजलि विश्वविद्यालय सभागार में ब्रह्मलीन स्वामी मुक्तानंद महाराज की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सनातन संस्कृति से जुड़े देश के शीर्ष संतों ने भावांजलि भेंट की। इस अवसर पर योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद महाराज सच्चे संत और पतंजलि की ऊर्जा के केंद्र थे। कहा कि स्वामी मुक्तानंद चाहते थे कि पतंजलि योगपीठ आध्यात्मिक दृष्टि से, आंतरिक दृष्टि से सुदृढ़ हो, पतंजलि के संन्यासी अत्यंत यशस्वी हों, संस्था की राष्ट्र और विश्वव्यापी योजनाओं का नेतृत्व हमारे संन्यासी करें।
आने वाले 5-10 वर्षों में हमारे संन्यासी इतने समर्थ हो जाएंगे कि एक स्वामी मुक्तानंद नहीं यहां सैकड़ों स्वामी मुक्तानंद उसी संकल्प से अनुप्राणित होकर योगधर्म, ऋषिधर्म को निभाएंगे। आचार्य बालकृष्ण के साथ कई दौर की वार्ता के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भविष्य में दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) और पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) का ट्रस्टी कोई गृहस्थी नहीं अपितु केवल संन्यासी ही होगा। योजना को मूर्तरूप प्रदान करने को वैधानिक प्रक्रियाओं को शीघ्र पूर्ण कर लिया जाएगा।
जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद महाराज परमार्थ का दूसरा नाम हैं। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद महाराज हमारे ज्येष्ठ भ्राता थे। प्रकृति के प्रति उनकी निष्ठा, आध्यात्मिक निष्ठा व सांस्कृतिक निष्ठा को सब जानते हैं। निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद महाराज ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद दिव्य पुरुष थे। सच्चे साधक व सरल व्यक्तित्व के धनी थे।
जगद्गुरु आश्रम के जगद्गुरु स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने कहा कि वह एक सच्चे संन्यासी थे। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि वे भस्म विज्ञान के महान ज्ञाता थे। परमार्थ निकेतन के संस्थापक स्वामी चिदानंद मुनि महाराज ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद महाराज दिव्यता और सादगी का संगम थे। इस दौरान स्वामी हरिचेतनानंद महाराज, विजय कौशल महाराज, महंत रघुमुनि, कोठारी महंत दामोदर दास, स्वामी कमल दास आदि मौजूद रहे।