उत्तराखंड : ग्लोबल वार्मिंग इफेक्ट के कारण संकट में है 353 नदियों का अस्तित्व, हालात नहीं सुधरे तो 20 साल में खत्म हो जाएंगी कई नदियां

उत्तराखंड की 353 गैर हिमालयी और बरसाती नदियों का अस्तित्व संकट में आ गया है।

Update: 2022-08-19 03:54 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तराखंड की 353 गैर हिमालयी और बरसाती नदियों का अस्तित्व संकट में आ गया है। इन नदियों में मानसूनकाल में भी पर्याप्त पानी नहीं है। हालात नहीं सुधरे तो अगले 20 साल में कई नदियों का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है। भूगोलविद् और कुमाऊं विवि के पूर्व एचओडी प्रोफेसर जेएस रावत के शोध में यह खुलासा हुआ है। शोध के मुताबिक, इन नदियों के उद्गम स्रोतों में पानी साल-दर-साल घट रहा है।

मौसम में आए बदलाव के अलावा उद्गम स्रोतों से पेयजल योजनाओं के लिए पानी के इस्तेमाल से यह संकट बढ़ा है। अवैज्ञानिक खनन भी इसकी बड़ी वजह है। प्रो. रावत कहते हैं कि नदियों का पुनर्जनन प्रोजेक्ट ही बरसाती नदियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है। प्रो. रावत ने हाल में जागेश्वर धाम की जटा गंगा नदी पर शोध पूरा किया है। मानसून काल में भी जटा गंगा का प्रवाह महज 19 लीटर प्रति सेकेंड मिला। जागेश्वर की इस प्रमुख नदी के जल से जागेश्वर धाम में भगवान शिव का अभिषेक होता है। हालात नहीं सुधरे तो आने वाले कुछ सालों में जटा गंगा भी सूख जाएगी।
नैनीताल के भूगोल विभाग कुमाऊं विवि के पूर्व एचओडी प्रो. जेएस रावत ने कहा, 'उत्तराखंड की सभी 353 गैर हिमानी नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसके लिए नदियों के उद्गम स्थल के ऊपर चाल, खाल और खंतियों के निर्माण पर फोकस करना होगा। साथ ही सरकार को नदियों के संरक्षण के लिए प्राधिकरण या अलग से विभाग बनाने की पहल करनी चाहिए।'
कोसी नदी का जलस्तर 90 से अधिक गिरा
प्रो. रावत 1992 से कोसी नदी पर शोध कर रहे हैं। 1992 में गर्मियों के दिनों में कोसी का प्रवाह 790 लीटर प्रति सेकेंड था। इस साल यह गिरकर 48 लीटर प्रति सेकेंड पहुंच गया था। यही हाल अधिकांश नदियों का है।
संकट में हैं ये नदियां
- गढ़वाल मंडल: नयार, मंडल, सोना, रिस्पना, सौंग, बिंदाल, आसन आदि।
- कुमाऊं: कोसी, कुंजगढ़, शिप्रा, गगास, लोहावती, पनार, गरुड़ गंगा, गोमती, गौला, नंधौर।
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