वैज्ञानिकों ने किया शोध, हेमकुंड साहिब के सात किमी रास्ते में हिमस्खलन का खतरा
वैज्ञानिकों ने किया शोध
उत्तराखंड के चमोली जिले में आस्था के केंद्र हेमकुंड साहिब का पैदल अटलाकोडी सात किमी मार्ग हिमस्खलन के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील है। वैज्ञानिकों ने इस पूरे मार्ग पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य नहीं करने को आगाह किया है। कहा कि सड़क, भवन या अन्य किसी तरह के निर्माण कार्य इस इलाके की संवेदनशीलता को कई गुना बढ़ा देंगे। इसके बजाय रोपवे उचित विकल्प है।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. कालाचांद साईं और डा. मनीष मेहता के शोध में यह खुलासा हुआ है। शोध के मुताबिक, हेमकुंड साहिब और घांघरिया के बीच लक्ष्मणगंगा जलग्रहण क्षेत्र में अटलाकोडी ट्रैक हिमस्खलन के हिसाब से खतरनाक है। यात्री जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे हैं। अटलाकोडी घने बुनियादी ढांचे घांघरिया रनआउट जोन के ऊपर बना है, जो असुरक्षित है। वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र की मैपिंग कर पाया कि हिमस्खलन ने 747910 वर्ग मीटर के औसत क्षेत्र को प्रभावित किया है।
तीव्र ढलान और संकरा मार्ग चुनौती: अटलाकोडी में इस साल 18 अप्रैल को हुए हिमस्खलन से घांघरिया और हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा के बीच ट्रैक रूट जोन और ट्रेल को व्यापक नुकसान पहुंचा। लक्ष्मणगंगा जलग्रहण मार्ग पर 30 डिग्री ढलान पर हिमस्खलन क्षेत्र की लंबाई चार किलोमीटर और चौड़ाई 150 मीटर पाई गई है। इन इलाकों में हिमस्खलन थर्मोडायनामिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप हो रहे हैं। तापमान, हवा का वेग और तीव्र ढाल इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार है।
अटलाकोडी ट्रैक पर बड़ी घटनाएं: अक्तूबर 1998 में हिमस्खलन के कारण 27 तीर्थ यात्री बर्फ में दबकर मारे गए थे। 23 जून 2008 को भी आठ तीर्थयात्रियों की मौत हुई, 12 अन्य घायल हुए थे। 21 अप्रैल 2022 को मार्ग पर हिमस्खलन का वीडियो सोशल मीडिया पर आया।
हेमकुंड साहिब में राज्य सरकार को सुरक्षित यात्रा के लिए ठोस निर्णय लेने होंगे। बेहद संवेदनशील होने की वजह से इस क्षेत्र में भवन निर्माण, बड़ी संरचनाएं या पहाड़ से छेड़छाड़ घातक साबित हो सकता है। लिहाजा हेमकुंड यात्रा मार्ग पर किसी भौतिक संरचना के मुकाबले रोपवे जैसे प्रोजेक्ट ही बेहतर विकल्प हैं।
डा. कालाचांद साईं, निदेशक वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान