लोगों ने की गुफा में रहने वाले बाबा की हत्या, जानें पूरा मामला

अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे पर स्थित कैंची धाम से करीब दो किमी दूर गुफ़ा में रहने वाले बाबा व उनके साथी पर देर रात कुछ लोगों द्वारा भारी आक्रमण हुआ जिसमें बाबा की हत्या हो गई और उनके साथी बुरी तरह घायल हो गए।

Update: 2021-11-18 14:07 GMT

जनता से रिश्ता। अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे पर स्थित कैंची धाम से करीब दो किमी दूर गुफ़ा में रहने वाले बाबा व उनके साथी पर देर रात कुछ लोगों द्वारा भारी आक्रमण हुआ जिसमें बाबा की हत्या हो गई और उनके साथी बुरी तरह घायल हो गए।

घटनास्थल पर पहुंचे गांव वालो ने गंभीर रूप से घायल बाबा व दूसरे व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाया जहां बाबा ने दम तोड़ दिया। घटना से क्षेत्र में हडकंप मचा हुआ है।
कैंची धाम के ठिक ऊपर स्थित थुआ की पहाडी़ में बाबा केशर नाथ (103) बीते 20 वर्षों से एक गुफ़ा में रहने वाले थे। उनके आसपास के लोग ही उनकी सेवा भी करते थे। पिछले कुछ दिनों से बाबा अस्वस्थ थे गांव में रहने वाले तीरथ सिंह मेहता उनकी सेवा कर रहे थे। गुरुवार देर रात कुछ लोगों ने गुफा में घुस लूटपाट के इरादे से बाबा व बाबा के साथ रह रहे व्यक्ति पर धारदार हथियारों से हमला कर दिया। बाबा व तीरथ को बेरहमी से पीटा गया।
घटना की सूचना मिलने के बाद एसएसपी सुनील कुमार मीणा ने सीओ अनुषा बडोला, कोतवाल आशुतोष सिंह, चौकी प्रभारी खैरना आशा बिष्ट,एसएसआई के साथ पहाड़ी पर स्थित गुफा का मुआयना किया। फॉरेंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए। बाबा की कुटिया से एक लाख रुपया नगद व थोडी़ मात्रा में चरस बरामद की गई है। हालांकि, बाबा पर हमला किस मकसद से किया गया अभी यह साफ नहीं हो सका है।
एक बार और हमले के शिकार हुए थे बाबा
एक साल पहले भी बाबा पर हमला हुआ था तब भी बाबा बाल-बाल बचे थे। बीते शनिवार को भी कुछ अज्ञात लोग कुटिया में पहुंचे थे। लेकिन बाबा बाहर नहीं निकले। दबी जुबान लोग बताते हैं कि कुछ लोग चरस पीने की फिराक में भी कुटिया तक पहुंचते थे। अंदाजा लगाया जा रहा है कि चरस पीने के विवाद को लेकर ही बाबा पर हमला किया गया। हालांकि हत्या की असल वजह अभी सामने नहीं आ सकी है।
जानिए ये और ख़ास बात
आपको बता दें कि, गरुड़ निवासी बाबा सेना से अवकाश प्राप्त थे। प्रतिमाह पच्चीस हजार रुपया उनको पेंशन भी मिलती थी।उन्होंने गुफा के आसपास काफी कार्य भी कराएं। लोगो को उस स्थान से काफी आस्था भी थी। बाबा ग्रामीणों को कहा करते थे कि उन्होंने वर्ष 1965 व 1971 की लड़ाई में युद्ध में हिस्सा भी लिया था। बाबा के शरीर में गोलियों के काफी निशान भी थे।


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