प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र अपनी शांत और खूबसूरत वादियों के लिये तो पहचाने ही जाते हैं। साथ ही प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का खजाना तो यहां है ही, इन सबके साथ यहां पाये जाने वाले कई प्राकृतिक फलों का अपना एक अलग महत्व है। यहां पाये जाने वाली फल,सब्जियों के अंदर कई औषधीय गुण मौजूद रहते हैं।
जिनसे कई बार यहां के भी लोग अनजान रहते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में यहां मिलने वाले बेडू फल का जिक्र किया है। इसके अलावा पांगर भी ऐसा फल है जो पहाड़ की पहचान है। जनपद में कई स्थानों में पांगर के पेड़ अब भी है लेकिन इसके महत्व को न जानने के कारण इस फल के उत्पादन के प्रति किसान जागरूक नहीं है।
चेस्टनेट यानि पांगर फल का पूरा कवर कांटेदार होता है। जिस कारण इस फल को तोड़ने में खासी मेहनत लगती है। साथ ही इसमें काफी औषधीय गुण पाये जाते हैं। बताया जाता है कि चेस्टनट अथवा पांगर अंग्रेजों के साथ भारत आया। फेगसी प्रजाति के इस फल की दुनिया भर में कुल 12 प्रजातियां हैं। ठंडे स्थानों पर पाए जाने वाले चेस्टनट अथवा पांगर के पेड़ की आयु 300 साल मानी जाती है।
चेस्टनट में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। जनपद में कई स्थानों पर बुजुर्गों द्वारा लगाए गए इसके पेड़ मौजूद हैं लेकिन आम जनता इसके औषधीय गुणों को नहीं जानती है, जिस कारण इसका प्रयोग नहीं हो पाता है। साथ ही बंदर व लंगूर भी इस फल को नुकसान पहुंचाते हैं।
औषधीय गुणों से भरा पड़ा है पांगर
चेस्टनेट यानि पांगर इम्यून सिस्टम मजबूत बनाता है।इसके सेवन से हृदय रोग, हार्ट अटैक और स्ट्रोक के खतरे को कम किया जा सकता है।साथ ही डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसे क्रोनिक डिजीज में भी चेस्टानेट के सेवन से काफी फायदा होता है। दरअसल चेस्टनेट में कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, विटामिन सी और मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है।
बाजार में काफी मांग है पांगर की
बागेश्वर। हालांकि स्थानीय बाजार में पांगर की उपलब्धता काफी कम होती है परंतु इसके उपयोग के जानकार भवाली आदि क्षेत्रों से पांगर मंगाते हैं। जहां यह 200 से लेकर 300 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है।जिस कारण यह स्वरोजगार का भी जबरदस्त साधन है। मई और जून के माह में इसके पेड़ से फूल आते हैं तथा अगस्त -सितंबर तक फल भी पक जाते हैं। स्थानीय लोगों के साथ-साथ सैलानियों में भी खासे लोकप्रिय हो रहे चेस्टनट की बाजार में भी खासी मांग है।