उत्तराखंड: उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला जहां साक्षात भोलेनाथ निवास करते हैं. भगवान रुद्र की नगरी रुद्रप्रयाग हिंदू धर्म की आस्था का केन्द्र है. यहां केदारनाथ, तुंगनाथ, त्रियुगीनारायण, टपकेश्वर समेत न जाने कितने ही मंदिर मौजूद हैं, जहां दर्शन करने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इससे इतर रुद्रप्रयाग जिले में लगातार बढ़ रही प्राकृतिक आपदायें चिंता का विषय बनी हुई हैं. इसे लेकर सबके अपने मत हैं, लेकिन इस बीच ISRO की एक रिपोर्ट ने रुद्रप्रयाग वासियों के पैरों तले जमीन खिसका दी है.
दरअसल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के हालिया अध्ययन में उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला भारत का सर्वाधिक भूस्खलन संवेदनशील जिला है. इसके अलावा यहां भूस्खलन घनत्व भी सबसे अधिक है. साथ ही प्रभावित होने वाली कुल आबादी, कामकाजी आबादी और घरों की संख्या में सबसे अधिक है.
ऊखीमठ क्षेत्र में है सबसे अधिक आपदा का प्रकोप
रुद्रप्रयाग जिले में आपदा के कारण यहां के आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में पड़ने वाले प्रभावों पर शोध कर रहे पंकज रावत ने बताया कि रुद्रप्रयाग जिले में भूस्खलन व आपदाओं की संख्या में बदलते वक्त के साथ बढ़ोतरी देखने को मिली है. यहां आपदा में तबाह हुए गांव एक बार फिर उसी स्थान पर दोबारा बस गये हैं. रुद्रप्रयाग जिले में सबसे ज्यादा ऊखीमठ क्षेत्र आपदाग्रस्त है. यहां सामजिक व आर्थिक रूप से लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. आज भी लोग बारिश के दौरान दरवाजे खुले रखकर सोते हैं, ताकि कुछ अनहोनी हो तो सीधे भाग सके.
साल दर साल बढ़ रही भूस्खलन की घटना
गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमएम सेमवाल बताते हैं कि रुद्रप्रयाग में इस साल काफी ज्यादा भूस्खलन देखने को मिला, जिसमें 23 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. लेकिन यह पहली बार नहीं है कि रुद्रप्रयाग में इस तरह की घटना हुई है. प्रो. सेमवाल बताते हैं कि 1804 में गढ़वाल क्षेत्र में आए 8.0 रिएक्टर स्केल के भूकंप से यहां भारी तबाही हुई थी. इसके बाद 1961, 1979, 1991 में आपदा में लोगों की जान चली गई. 1998 में भूस्खलन से ऊखीमठ क्षेत्र में तबाही देखने को मिली थी, जिसमें 103 लोग हताहत व 47 गांव के 1927 परिवार प्रभावित हुए. इसके बाद फाटा में हुए भूस्खलन में 28 लोगों की मौत हुई और 15 गांव व 848 परिवार प्रभावित हुए. 2012 में ऊखीमठ क्षेत्र में एक बार फिर 21 गांव के 69 लोग हताहत हुए. वह बताते हैं कि मानसून के दौरान इस क्षेत्र में भूस्खलन व बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं. 12 सितंबर 2012 की रात जिले में बादल फटा और भूस्खलन हुआ, जिसमें कई परिवार काल के गाल में समा गये. इसके बाद 2013 की भीषण आपदा व तबसे लगातार साल दर साल ये घटनाएं बढ़ रही हैं.
भूकंप जोन 5 में आता है क्षेत्र
रुद्रप्रयाग में लैंडस्लाइड व आपदाओं के आने के पीछे के कारणों पर नजर डालें, तो रुद्रप्रयाग जिला मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) पर है. यह भारत के भूकंपीय मानचित्र के जोन 5 में आता है. इस क्षेत्र की कमजोर पहाड़ी ढलाने, भूकंप के झटके, भारी वाहनों के कंपन और भारी निर्माण के प्रति बेहद संवेदनशील हैं. ऐसे में यहां भारी निर्माण पर रोक चैक डैम, खेती के पैटर्न में परिवर्तन समेत पर्यावरण संरक्षण से कुछ हद तक आने वाले समय में तबाही से बचा जा सकता है.