भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सव आज 17 सितम्बर को मनाया जा रहा है। इस दिन कल-कारखानों और प्रतिष्ठानों में विधि-विधान से भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जा रही है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, यमपुरी, वरुण पुरी, कुबेरपुरी, पांडवपुरी, सुदामापुरी, शिवपुरी आदि का निर्माण किया था। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी प्रकार के देवताओं के अस्त्र एवं दैनिक उपयोग होने वाले वस्तु भी इनके ही द्वारा बनाया गया है।
नमोस्तु विश्वरूपाय विश्वरूपाय ते नमः।
नमो विश्वात्माभूताय विश्वकर्मा नमोस्तुते।।
अर्थ - विश्व जिसका रूप है तथा विश्व जिसकी आत्मा है , उन विश्वकर्मा जी को मैं नमन करता हूं।
यो विश्व जगत करोत्यत: से: विश्वकर्मा।
अर्थात् जो संसार की रचना करता है, वह विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद के विश्वकर्मा सूक्त में हुआ है। ऋग्वेद के दशम मंडल में सूक्त ८१ एवं सूक्त ८२ के १४ मंत्रों को विश्वकर्मा सूक्त कहते हैं । ये मंत्र यजुर्वेद में भी मिलते हैं। हिंदुओं के दो त्यौहार संक्रांति में ही मनाई जाती हैं। पहला - खिचड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति को मनाया जाता है और दूसरी - विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति को मनाई जाती है भारतीय मजदूर संघ विश्वकर्मा जयंती को राष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में पालन करता है। संस्कृत साहित्य में विश्वकर्मा शब्द बहुत अर्थों में प्रकट हुआ है। विश्वकर्मा का प्रथम अर्थ उस विराट शक्ति का बोधक है , जिसने सृष्टि की रचना की। इस दृष्टि से सृष्टिकर्ता , परमात्मा आदि अर्थ विश्वकर्मा के होते हैं ।दूसरा अर्थ अंगिरा वंश में उत्पन्न विश्वकर्मा नामक एक विभूति से जुड़ा हुआ है , जो विश्व के आदि शिल्पाचार्य का द्योतक है। " विश्कर्मा वास्तुशास्त्र "ग्रंथ के कर्ता विश्वकर्मा माने जाते हैं। जगत का यह सर्वप्रथम ग्रंथ वास्तुकला को शास्त्र के रूप में प्रस्तुत करता है। विश्वकर्मा जी ने इंद्र के लिए इंद्रलोक और सुतल नामक पाताल तथा दानवों के लिए लंका का निर्माण किया था।
भगवान श्रीकृष्ण के लिए द्वारिका और वृंदावन का तथा पांडवों के लिए हस्तिनापुर का निर्माण किया था प्रसिद्ध पुष्पक विमान इन्होंने ही बनाए थे। इस विमान की यह विशेषता थी कि वह भूतल पर , जल में तथा आकाश में - तीनों मार्ग में भ्रमण कर सकता था तीसरा अर्थ है - ' विश्वकर्मा ' उपाधि अर्थात् विशिष्ट कार्यों में दक्ष होने के कारण अनेक व्यक्तियों को विश्वकर्मा उपाधि प्रदान की गई थी। आज भी भारत के स्वर्णकार (सोनार ) , लौहकार (लोहार) , कुंभकार (कुम्हार) आदि स्वयं को विश्वकर्मा के वंशज मानते हैं और गौरव का अनुभव करते हैं। कई लोगों की उपाधि (टाइटल) आज भी विश्वकर्मा है।जिस प्रकार आधुनिक युग में अमेरिकन वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन को अपने जीवन-काल में २००० से अधिक विविध खोजों के लिए पेटेंट मिला है , ठीक इसी प्रकार विश्वकर्मा जी ने अनेक प्रकार के साधन , अस्त्र-शस्त्र , शिल्प आदि १२०००(बारह हजार)छोटे-बड़े यंत्रों का निर्माण किया था।अपने प्रथम पुत्र विश्वरूप की हत्या कर दिए जाने के पश्चात् प्रतिशोध की भावना से विश्वकर्मा जी पुनः पुत्र प्राप्ति हेतु कठोर तपस्या करने लगे । उनको वृत्र नामक अत्यंत बलशाली महायुद्ध पुत्र प्राप्त हुआ। वह वृत्रासुर कहलाने लगा क्योंकि वह दुष्ट एवं दुराचारी था। उसके वध के लिए देवताओं ने बृहस्पति से उपाय पूछा , तो उन्होंने कहा कि ऋषि दधीचि की अस्थि से निर्मित वज्र से वृत्रासुर का वध संभव है। लेकिन ऐसा वज्र तो विश्वकर्मा ही बना सकते हैं। क्या विश्वकर्मा अपने पुत्र की मृत्यु हेतु ऐसा वज्र बनाएंगे ? जब देवगण विश्वकर्मा जी के पास पहुंचे और अपनी बात कही , तो विश्वकर्मा जी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर का वध विश्वकर्मा जी द्वारा बनाए गए वज्र से किया था। पिता होकर भी अपने पुत्र (दुराचारी) के वध के लिए विश्वकर्मा जी ने वज्र बनाया था। महापुरुषों के जीवन की यही विशेषता होती है कि वे व्यापक जनहित में निजी स्वार्थ की तिलांजलि दे देते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले लोगों को विश्वकर्मा जी का आदर्श ग्रहण करना चाहिए।
आचार्य राजेन्द्र प्रसाद बेबनी