यहां 250 ग्रामीण सड़कें लावारिस, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में हुआ था निर्माण
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में हुआ था निर्माण
उत्तराखंड की 250 ग्रामीण सड़कों का कोई देख- रेख करने वाला नहीं। ये सड़कें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी थीं, इसमें कुछ तो 10 से 15 साल पहले से बिना रख रखाव के बदहाल पड़ी हुई हैं। ग्रामीण सड़कों का निर्माण मुख्य रूप से पीएमजीएसवाई के तहत होता है।
निर्माण की शर्त के मुताबिक शुरुआती पांच साल तक इन सड़कों की मरम्मत का काम संबंधित ठेकेदार करता है। इसके बाद इन सड़कों पर पीएमजीएसवाई का स्वामित्व समाप्त हो जाता है। कायदे से इसके बाद इन सड़कों को नियमित देख रेख के लिए लोनिवि को लेना चाहिए, लेकिन लोनिवि सड़कों को ले नहीं रहा है।
इस कारण पूरे प्रदेश में 250 सड़कें बिना रख रखाव के बदहाल पड़ी हुई हैं। जिसकी कुल लंबाई 1842 किमी है। उक्त सभी सड़कें निर्माण के पांच साल पूरा कर चुकी हैं। जिस कारण कुछ पर अब यातायात भी बंद है। पीएमजीएसवाई के एसई राजेश कुमार के मुताबिक एजेंसी के पास रख रखाव का बजट नहीं होता है।
उनका मूल काम सड़क विहीन गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने का है। शुरुआती पांच साल के बाद इन सड़कों को रख रखाव के लिए लोनिवि को सौंप दिया जाता है, इसके लिए विभाग को पत्र लिखा गया है।
देहरादून: सहस्त्रधारा-चामासारी सड़क 15 साल पहले बन गई थी, लेकिन दोबारा इस सड़क पर डामरीकरण नहीं हो पाया। पूर्व प्रधान कृपाल सिंह जवाड़ी ने बताया कि सड़क पर दो हादसे भी हो चुके हैं, जिसमें दो लोगों की मौत हुई है। यही हाल सेरकी-सिल्ला और धारकोट तलाई का भी है।
घनसाली: घनसाली तहसील के छतियारा-खवाड़ा मोटरमार्ग 2012 में बनने के बाद से बदहाल पड़ा हुआ है। 19 किमी लंबी सड़क से 32 गांव जुड़ते हैं। सड़क पर गहरे गड्ढे पड़ने के साथ ही दीवारें भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। पिछले साल यहां वाहन दुर्घटना में चार लोगों की मौत हो चुकी है।
थराली: 2013-14 में थराली- कुराड़ - पार्था मोटरमार्ग का निर्माण शुरू हुआ था। कुल 17 किमी लंबी सड़क महज एक साल के भीतर ही गड्ढों तब्दील हो गई। कुराड़ के प्रधान हरिराम का कहना है कि बरसात के दिनों में स्क्रबर बन्द होने के चलते पानी सड़क पर बहने लगता है।
चम्पावत: जिले में पीएमजीएसवाई की छह सड़कें बगैर रख रखाव के चल रही है। इसमें मंच-नीड़ मार्ग का निर्माण 2014-15 में किया गया था। इसी तरह हरम - रमेला, खर्क कार्की-मुड़यिानी मार्ग, लिपुलेख भिंड-पचपकरिया मार्ग, किमतोली-खतेड़ा मार्ग, डुंगराबोरा-कायल-मटियानी भी बदहाल है।
पिथौरागढ़: 25 किमी लंबा वल्थी-तोमिक मार्ग का निर्माण 2018 में हुआ। इस सड़क से वल्थी, गैला, राप्ती, पत्थरकोट, तोमिक गांव जुड़े हुए हैं। 16 करोड़ लागत वाले मार्ग का निर्माण कार्य तो पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक डामरीकरण नहीं हुआ है। किठियारौली के पास पुल भी नहीं बन पाया है।
रुद्रप्रयाग: 2010-11 में तूना-बौंठा मोटर मार्ग का निर्माण पूरा हुआ। इसके करीब 10 साल से अधिक का वक्त गुजर जाने के बाद भी सड़क की र्दुदशा हो रही है। पीएमजीएवाई के ईई विजयपाल सिंह ने बताया कि लोनिवि को हैंडओवर होने के लिए संयुक्त निरीक्षण किया गया है किंतु अभी आगे की कार्रवाई नहीं हो पाई है।
उत्तरकाशी: 2013 में बनकर तैयार हुई कोट - बागी सड़क की कुल लंबाई 10 किमी है। इसका लाभ पांच गांव की पांच हजार आबादी को मिलता है। बनने के नौ साल बाद भी सड़क डामरीकरण का काम पूरा नहीं हो पाया। 21 किमी लंबी जखोल - लिवाड़ी सड़क पर 2013 में काम शुरू हुआ, अब तक 15 किलोमीटर सड़क ही बन पाई है।
पौड़ी: अमोठा डोबल मोटर मार्ग का निमार्ण 2011 में हुआ था। आठ किमी लंबी सड़क का लाभ करीब 600 की आबादी को मिलता है। सड़क पर पिछले पाँच साल से किसी भी प्रकार के रख रखाव नहीं हुआ है। सड़क का अधिकांश भाग झाड़ियों से घिरा है। थपलियाल गांव से कालेश्वर की तक की 24 किमी लंबी सड़क भी बदहाल है।