हल्द्वानी शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल देने वाले ट्यूबवेल का भूजल स्तर लगातार घट रहा है। हल्द्वानी का भूजल स्तर पिछले 20 साल में 400 फीट तक नीचे चला गया है। खराब हो रहे ट्यूबवेल की वजह भूजल स्तर का गिरना ही माना जा रहा है। 20 साल के अंदर हल्द्वानी में आबादी और निर्माण दोनों का दबाव बढ़ चुका है।
वर्ष 2000 में 350 से 400 फीट की गहराई पर ट्यूबवेल से आसानी से पानी निकल आता था, लेकिन लगातार भूजल के दोहन से अब स्थिति चिंताजनक हो गई है। अब 700 से 750 फीट तक की गहराई में पाइप डालकर पानी खींचना पड़ रहा है। जल संस्थान के मुताबिक हल्द्वानी और आसपास के इलाके में 82 ट्यूबवेल से पेयजल की सप्लाई की जाती है।
पहाड़ी से सटे इलाकों के ट्यूबवेल में भूजल का संकट ज्यादा हो गया है। दरअसल हल्द्वानी से सटे पहाड़ी इलाकों में पानी को स्टोर करने वाले जंगल के कम होने से भी भूजल की कमी हो रही है। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ते भवन निर्माण से जमीन में बरसात का पानी भी नही पहुंच पा रहा है।
जल संस्थान रोजाना 66 एमएलडी भूजल निकाल कर लोगों के घरों में आपूर्ति कर रहा है। इतने बड़े स्तर पर भूजल दोहन होने से बीते दो दशक में 400 फीट तक भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। अगर समय रहते नहीं चेते तो आने वाले समय में पेयजल की समस्या गंभीर रूप ले सकती है।
मिश्रित वनों के कम होने से भी नही बढ़ रहा भूजल स्तर
मिश्रित वन भूजल को बढ़ाने में सहायक होते हैं। कभी हल्द्वानी के नजदीकी पहाड़ों में मिश्रित वन पाया जाता था। बाद में वन विभाग द्वारा इन जगहों में सागौन और शीशम के पेड़ लगा दिए गए। इससे मिश्रित वन कम हो गया है।
भूजल स्तर गिरने से दो ट्यूबवेल हो चुके हैं बंद
भूजल स्तर के रिचार्ज न होने से यह गंभीर अवस्था में पहुंच गया है। भूजल निकाले जाने से ट्यूबवेल पूरी तरह से सूख गए हैं। कभी पानी देने वाले पीपलपोखरा और पनियाली के ट्यूबवेल अब बंद हो चुके हैं।
गर्मियों में भूजल स्तर गिरने से परेशानी होती है। सरकारी विभागों और अस्पतालों की बिल्डिंग में रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जा रही है, जो भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक होगी।
संजय कुमार श्रीवास्तव, अधिशासी अभियंता, जल संस्थान