चुनाव में किसान कर सकते हैं बड़ा उलटफेर
देश भर की तरह उत्तराखंड में भी किसानों की नाराजगी भाजपा के लिए पहले दिन से ही चिंता का सबब रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले कृषि कानून पर रोलबैक का फैसला लेकर किसानों को संतुष्ट करने की कोशिश तो की है,
जनता से रिश्ता। देश भर की तरह उत्तराखंड में भी किसानों की नाराजगी भाजपा के लिए पहले दिन से ही चिंता का सबब रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले कृषि कानून पर रोलबैक का फैसला लेकर किसानों को संतुष्ट करने की कोशिश तो की है, लेकिन पिछले एक साल से ज्यादा समय से चल रहे आंदोलन को भूलकर किसान क्या भाजपा को अपना पाएंगे, यह बड़ा सवाल है?
उत्तराखंड में किसान और जवान दोनों ही राजनीतिक रुप से हमेशा ही पार्टियों के फोकस में रहे हैं. प्रदेश की 70 प्रतिशत आबादी का जीवन यापन कृषि है, लिहाजा कृषि और किसान राजनीतिक दलों के एजेंडे में काफी महत्वपूर्ण रहे हैं. हालांकि प्रदेश में 92 प्रतिशत छोटे किसान ही हैं, वैसे उत्तराखंड के 13 जिलों में से पहाड़ी जिले कृषि कानून को लेकर इतनी ज्यादा प्रभावित नहीं दिखाई दिए हैं और यह किसानों के आंदोलन को भी ना के बराबर ही देखा गया. लेकिन उत्तर प्रदेश से लगते मैदानी जिले किसानों के लिहाज से कृषि कानून के खिलाफ ज्यादा प्रभावी दिखाई दिए.
बीजेपी को मिली ऑक्सीजन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून को वापस लिए जाने का ऐलान किया तो मानों भाजपा को ऑक्सीजन मिल गई. हालांकि केंद्र सरकार के इस रोलबैक पर बीजेपी नेताओं को अब सफाई देने पड़ रही है. कृषि कानूनों की वापसी को बीजेपी नेता अब किसानों के हित में बता रहे हैं. क्योंकि यहां पार्टी नेताओं को अपनी गलती मानने से भी बचना पड़ रहा है.
हरिद्वार में किसानों का प्रभाव: कृषि कानून के कारण उत्तराखंड के 2 जिलों में भाजपा के लिए मुश्किलें सबसे ज्यादा दिखाई दी. कहने को तो उत्तराखंड के 13 में से मात्र 2 जिलों में ही किसानों के सबसे ज्यादा आंदोलन देखने को मिले, लेकिन विधानसभा सीटों के लिहाज से देखे तो इन 2 जिलों में ही 70 में से 20 सीटें मौजूद हैं. हरिद्वार जिले को देखें तो यह 11 विधानसभा सीटों में से 9 विधानसभा सीटों में किसानों की संख्या ज्यादा है. एक आकलन के अनुसार जिले में कुल 1,28,000 किसान खेती करते हैं. इस तरह उनके परिवार को जोड़ लें तो इस जिले की 9 विधानसभा सीटों में किसान जीत और हार का समीकरण बदल सकते हैं. इन विधानसभा सीटों में हरिद्वार ग्रामीण, भगवानपुर, ज्वालापुर, कलियर, खानपुर, झबरेड़ा, रानीपुर, लक्सर और मंगलौर शामिल है.
उधमसिंह नगर में स्थिति अच्छी नहीं: उधमसिंह नगर जिले में भी कृषि कानून के कारण भाजपा की स्थिति खराब दिखाई देती है. इस जिले में कुल 9 विधानसभा में मौजूद है, जिसमें सभी विधानसभाओं में सिख और पंजाबी मतदाता मौजूद हैं, जिनका कृषि कानून को लेकर विरोध रहा है. वैसे कृषि कानून के कारण उधमसिंह नगर में हो रहे नुकसान को देखते हुए पहले ही भाजपा ने मुख्यमंत्री उधमसिंह नगर जिले से बना कर नाराजगी को कुछ हद तक कम करने की कोशिश की है, लेकिन उससे भी ज्यादा बात बनती हुई नहीं दिखी.
सिख समुदाय का प्रभाव: कृषि कानूनों को लेकर उधमसिंह नगर में स्थिति इतनी खराब है कि पिछले दिनों दिग्गज नेता यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य का बीजेपी से कांग्रेस में जाने की भी वजह इसी को बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य किसानों की नाराजगी को देखते हुए ही कांग्रेस में वापसी कर गए. सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा से आते हैं और यहां पर भी बड़ी संख्या में सिख मतदाता हैं और किसान भी है. उधमसिंह नगर जिले की बात करें तो यहां जसपुर, किच्छा, काशीपुर, रुद्रपुर, गदरपुर, बाजपुर, नानकमत्ता सितारगंज और खटीमा सभी सीटों पर किसान सिख पंजाबी मतदाता राजनीतिक समीकरणों को बना और बिगाड़ सकते हैं.