खतरे में उत्तराखंड के 1200 जलस्रोत, अध्ययन में खुलासा

राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी में पांच से लेकर 80 फीसदी तक की गिरावट आई है।

Update: 2021-12-21 06:01 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी में पांच से लेकर 80 फीसदी तक की गिरावट आई है। राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के तीन साल से चल रहे अध्ययन में करीब 1200 से अधिक जलस्रोतों के परीक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, पर्वतीय इलाकों में पेयजल आपूर्ति का मुख्य जरिया प्राकृतिक जलस्रोत ही होते हैं। इन पर ही प्रदेश की अधिकतर पेयजल पंपिंग योजनाएं बनाई गई हैं। पर स्रोतों में पानी कम होने से भविष्य में पर्वतीय इलाकों में जल संकट बढ़ने की पूरी आशंका है। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है। गुणवत्ता खराब हुई तो लोगों में कई तरह की बीमारियां फैलने का भी डर है। इसलिए पानी की गुणवत्ता और जांच के प्रति भी लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। यूकॉस्ट के प्रदेश कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रशांत सिंह के अनुसार जल संस्थान के साथ मिलकर टिहरी के सेलूपानी में एक पूरी तरह सूख चुके पेयजल स्रोत को दोबारा जीवित करने की योजना पर काम हो रहा है। हमारी कोशिश है कि जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की वैज्ञानिक विधि तैयार की जा सके। जिससे कि कम से कम संसाधनों का प्रयोग कर प्रदेश के जलस्रोतों को जीवित किया जा सके।

प्रदेश कोऑर्डिनेटर यूकॉस्ट के डॉ. प्रशांत सिंह ने कहा कि हमारे कई शोधार्थी राज्य बनने के बाद पेयजल की स्थिति पर लगातार शोध कर रहे हैं। इस पर प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं। सभी भविष्य में गंभीर पेयजल संकट की ओर इशारा करते हैं। इसलिए हमें अपने प्राकृतिक जलस्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अनियोजित रूप से सड़क निर्माण जलस्रोतों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। भविष्य में कई पेयजल योजनाओं में पानी की भारी कमी हो सकती है। इसलिए हम पानी के डिस्चार्ज की कमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर काम कर रहे हैं।
अनियोजित सड़क निर्माण और विस्फोटकों का बुरा असर
रिपोर्ट के अनुसार, जलस्रोतों से पानी की निकासी में कमी के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ ही पहाड़ों में अनियोजित रूप से लगातार बन रही सड़कें हैं। पहाड़ों में हो रहे विस्फोटकों के प्रयोग से प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी पर सबसे बुरा असर पड़ा है। डॉ. प्रशांत सिंह के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव व चीड़ के जंगलों का अधिक फैलाव भी जलसंकट का प्रमुख कारण है।
केंद्र सरकार की मदद से पानी की गुणवत्ता की जांच को किट तैयार की गई है। इसकी मदद से तुरंत ही पानी की गुणवत्ता के बारे में पता लगाया जा सकता है। 'यूकॉस्ट' इस किट के प्रयोग करने के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दे रहा है। जल संस्थान की मदद से यह किट हर जिले में वितरित की जानी है। इसका मकसद साफ पानी की सप्लाई के साथ लोगों को पेयजल की स्वच्छता के प्रति जागरूक करना भी है।


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