Salim Sherwani सपा के लिए क्‍यों हुए इतने खास?

Update: 2024-07-22 06:47 GMT
उत्तर प्रदेश UTTAR PRADESH : समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सलीम इकबाल शेरवानी का इस्तीफा नामंजूर कर यह संदेश देने का काम किया है कि मुस्लिम समाज के असली हितचिंतक वही हैं और पार्टी में उनका पूरा सम्मान है। लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन का मुस्लिम मतदाताओं ने खुलकर साथ दिया। AKHILESH अखिलेश चाहते हैं कि मुस्लिमों का साथ बनाए रखा जाए। वह जानते हैं कि मुस्लिमों के साथ से ही वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में उनकी राह आसान होगी। इसीलिए सलीम शेरवानी को साथ रखकर संदेश दिया है कि वह मुस्लिमों को अपने से नाराज नहीं होने दे सकते हैं।
चार बार सपा से सांसद रहे सलीम शेरवानी वैसे तो प्रयागराज के रहने वाले हैं, लेकिन उन्होंने अपना राजनीतिक कार्यक्षेत्र बदायूं बनाया। वह पहले कांग्रेस के टिकट पर बदायूं से सांसद चुने जाते रहे, लेकिन वर्ष 1996 से वर्ष 2004 तक चार बार सपा के टिकट से बदायूं से ही सांसद चुने गए। सलीम शेरवानी की पहचान उत्तर प्रदेश में बड़े मुस्लिम नेताओं के रूप में है। बदायूं से जब उनका टिकट काट कर धर्मेंद्र यादव को दिया गया, तो वह नाराज होकर
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कांग्रेस में चले गए, लेकिन वर्ष 2020 में वह पुन: सपा में शामिल हुए। सपा में आने पर उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया, लेकिन जब राज्यसभा के लिए उनके नाम का ऐलान नहीं हुआ तो उन्होंने फिर सपा से इस्तीफा दे दिया।
मनाकर साथ लाए शिवपाल Lok Sabha Elections लोकसभा चुनाव 2024 में बेटे आदित्य यादव को टिकट मिलने के बाद शिवपाल यादव ने सलीम शेरवानी को मनाया और अपने साथ लेकर बदायूं में खूब घूमे। सपा को इसका फायदा भी मिला और फंसी हुई सीट आदित्य यादव जीत गए। सलीम शेरवानी की मुस्लिमों में अच्छी पकड़ का फायदा सपा किसी दूसरे को उठाने नहीं देना चाहती है। एक समय सपाई रहे इमरान मसूद कांग्रेसी हो गए हैं। हालांकि, सपा-कांग्रेस का गठबंधन है, लेकिन इसके बाद भी अखिलेश पश्चिम में उनकी टक्कर के नेता का साथ चाहते थे। इसीलिए उनका इस्तीफा नामंजूर करते हुए मुस्लिमों को साधे रखने की चाल चली है। अखिलेश दे सकते हैं तोहफा अखिलेश यादव सलीम शेरवानी को विधानसभा चुनाव 2027 से पहले कुछ बड़ा तोहफा भी दे सकते हैं। आने वाले समय में होने वाले राज्यसभा चुनाव में उन्हें टिकट देकर उच्च सदन भी भेज सकते हैं। सपा के पास विधानसभा में मौजूदा समय 105 विधायक हैं और अपने दम पर वह होने वाले चुनावों में किसी को भी उच्च सदन भेज सकते हैं।
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