देवबंद में हुए जमीयत-उलमा-ए-हिंद के विचार मंथन का संदेश देश और मुसलमानों के लिए क्या है देवबंद में हुए
देवबंद में हुए जमीयत-उलमा-ए-हिंद के विचार मंथन का संदेश देश और मुसलमानों के लिए क्या है देवबंद में हुए
मुस्लिम धर्म गुरुओं के बड़े संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक देवबंद (Deoband) में की. इसमें देश के मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक हालात पर विचार विमर्श के बाद कई अहम प्रस्ताव पारित किए गए. इस सम्मेलन के ज़रिए जहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सरकार को पुरानी मस्जिदों और ऐतिहासिक इमारतों (Historical Places) से संबंधित गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ने की नसीहत दी है. वहीं मुसलमानों को मौजूदा बेहद मुश्किल वक्त में हिंदू समाज से सीधे टकराव से बचने, सब्र से काम लेने और अपने हक़ की लड़ाई के लिए संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करत हुए क़ानूनी रास्ता अपनाने की सलाह दी है
समान नागरिक संहिता का विरोध
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपने सम्मेलन में बाक़ायदा प्रस्ताव पारित करके देश में 'समान नागरिक संहिता' लागू करने की सरकार की कोशिशों का पुरज़ोर विरोध किया है. जमीयत ने इसे संविधान की में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत के ख़िलाफ़ क़रार दिया है. ग़ौरतलब है कि कुछ दिन पहले उत्तराखंड में नई सरकार बनने के बाद जब समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिशें शुरू हुई थी तो जमीयत से जुड़े उलेमा ने ही मुसलमानों को सड़कों पर उतर कर इसका विरोध नहीं करने की सलाह दी थी. अब सम्मेलन में जमीयत ने इस मुद्दे पर सरकार से टकराव का रास्ता अख़्तियार किया गया है. वहीं यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकार की शह पर कुछ संगठन मुसलमानों की धार्मिक पहचान ख़त्म करने की कोशिशों में जुटे हैं. जमीयत ने दो टूक कहा है कि उनकी कोशिशों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा.
नरम लहजे में सख़्त जवाब
सम्मेलन में हिंदू संगठनों की तरफ से मुसलमानों को लगातार दी जा रहीं धमकियों का नरम लहजे में बेहद सख्त जवाब दिया गया है. महमूद मदनी ने बेहद नरम लहजे में दो टूक बात कही है. एक तरफ़ मदनी ने मुसलमानों को समझाने की कोशिश की तो दूसरी तरफ कट्टर हिंदूवादी संगठनों और उनके नेताओं को जवाब दिया. उन्होंने कहा, 'हम ग़ैर नहीं हैं. हम इस मुल्क के हैं. यह मुल्क हमारा है. अच्छी तरह समझ लीजिए यह हमारा मुल्क है. मुल्क के प्रति जो ज़िम्मेदारी है हमारी, हम उसे निभाएंगे. उसके साथ कोई समझौता नहीं होगा. हमारा मज़हब अलग ज़रूर है. हमारा अंदाज़ अलग है. हमारी तहज़ीब भी अलग है. हमारे खाने पीने का तरीक़ा भी अलग है. तुमको अगर बर्दाश्त नहीं है हमारा मज़हब तो तुम कहीं और चले जाओ. मुसलमानों को समझाते हुए वो आगे बोले, भेजना नहीं है किसी को. क्योंकि वो ज़रा-ज़रा सी बात पर कहते हैं न कि जाओ पाकिस्तान चले जाओ. भैया तुम्हें मौक़ा नहीं मिला था पाकिस्तान जाने का. हमें मिला था लेकिन हमने उस मौक़े को ठुकरा दिया था. इसलिए हम तो कहीं नहीं जाने वाले. जो हमें जाने को कहते हैं वो ही इस मुल्क को छोड़कर चल कहीं और चले जाएं.'
धर्म संसद' के जवाब में 'सद्भावना संसद'
देवबंद में दो दिन चले इस सम्मेलन की चर्चा देशभर में है. देश में मुसलमानों के खिलाफ लगातार बनाए जा रहे हैं नफ़रत के माहौल के बीच इसे काफी अहम माना जा रहा है. सम्मेलन में जमीयत ने साफ किया कि नफ़रत का जवाब नफ़रत से नहीं दिया जा सकता. आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता. लिहाजा मुसलमानों के खिलाफ चलाए जा रहे हैं नफ़रत के ख़िलाफ़ जमीयत ने सम्मेलन के पहले ही दिन देशभर में 10,000 सद्भावना संसद करने का ऐलान किया गया. इनमें सभी धर्मों के प्रभावशाली लोगों को न्यौता दिया जाएगा. संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग की गई है कि हर साल 14 मार्च को 'इस्लामोफोबिया की रोकथाम का अंतरराष्ट्रीय दिवस' मनाया जाए. जिसके ज़रिये सभी धर्मों, जातियों और कौमों के बीच आपसी सद्भाव, सहनशीलता और शांति का संदेश दिया जा सके. इस अंतरराष्ट्रीय दिवस पर नस्लवाद और धार्मिक भेदभाव को मिटाने का साझा संकल्प लेने की भी योजना है.
जमीयत के दो दिवसीय सम्मेलन में अलग-अलग विषयों पर सात प्रस्ताव पास किए जाने की चर्चा थी लेकिन आखिर में 4 प्रस्ताव ही पास किए गए. इन चारों प्रस्तावों का सार कुछ यूं है:
1. ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह
ज्ञानवापी और मथुरा की शाही ईदगाह सहित अन्य मस्जिदों के खिलाफ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश की शांति, गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है. इन विवादों से नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं, लेकिन पुराने विवादों को जीवित रखने और गलतियों को सुधारने जैसे आंदोलनों से देश को कोई फायदा नहीं होने वाला. जब पूजा स्थल एक्ट-1991 से तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को इबादतगाह की जो हैसियत थी, वह बरकरार रहेगी. ऐसे में इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना शांति-सद्भाव के लिए उचित नहीं है.
2. पैगंबर साहब का अपमान बर्दाश्त नहीं
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस पर चिंता जताई है कि पैगंबर मुहम्मद के नाम पर नफरत भरे बयानों, लेखों और नारों की एक शृंखला फैलाई जा रही है. यह सोची-समझी साजिश का नतीजा है. इसलिए सरकार से मांग की गई है कि जल्द ऐसा कानून बनाएं, जिससे मौजूदा कानून-व्यवस्था की अराजकता खत्म हो. इस तरह के कामों पर रोक लगे और सभी धर्मों के महापुरुषों का सम्मान हो. जमीयत ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की है.
3. 'समान नागरिक संहिता' क़ुबूल नहीं
रमेश ने तीसरा अहम प्रस्ताव समान नागरिक संहिता को लेकर पास किया है. मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल मामले शादी, तलाक़, विरासत आदि के नियम-कानून किसी समाज या व्यक्ति ने नहीं बनाए हैं, बल्कि ये नमाज-रोजा की तरह मज़हबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं. इसलिए इनमें कोई बदलाव करना इस्लाम में हस्तक्षेप करने के बराबर होगा. अनेक राज्यों में सरकारों में बैठे लोग पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से कॉमन सिविल कोड लागू करने की बात कर रहे हैं. यह दखलअंदाजी स्वीकार नहीं होगी. हम मांग करते हैं कि सरकार भारत के संविधान की इस मूल विशेषता और गारंटी को ध्यान में रखकर मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के बाबत निर्देश जारी करे.
4. इस्लामी शिक्षा
जमीयत ने इस प्रस्ताव के ज़रिए देश में इस्लामी शिक्षाओं के बारे में गलत धारणाओं को दूर करने के लिए एक अभियान चलाने की जरूरत महसूस की है. मुसलमानों से सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश पोस्ट करने की अपील की गई है जो इस्लाम के गुणों और मुसलमानों के सही पक्ष को सामने लाएं. नई शिक्षा पाने वालों को उचित सामग्री उपलब्ध कराएं. वही मुस्लिम समाज में इस्लाम को लेकर जानकारी बनाने के लिए सीरत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विषय पर बड़े पैमाने पर इस्लामी क्विज आयोजित किए जाएं.
जमीयत के सम्मेलन पर संघ का इतिहास
जमीयत के दो दिवसीय सम्मेलन में पास किया गया प्रस्तावों पर संघ ने कड़ा ऐतराज़ जताया है. हालांकि संघ ने सीधे तौर पर इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है. संघ से जुड़े 'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' की तरफ से इसे मुसलमानों को भड़काने वाले प्रस्ताव क़रार दिया गया है. हालांकि राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के किसी बड़े पदाधिकारी ने इस पर टिप्पणी नहीं की. उसने अपने सहारनपुर के जिला संयोजक को आगे करके जमीयत के खिलाफ मोर्चा खोला है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सहारनपुर के जिला संयोजक राव मुशर्रफ अली ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद सम्मेलन कर देश के मुसलमानों के जज्बात भड़काना चाहती है. जिससे नफ़रत का माहौल पैदा हो. ज्ञानवापी, मथुरा और कुतुब मीनार को लेकर जो हुजूम जोड़ा है, यह ग़लत है. मामला कोर्ट में विचाराधीन है, फैसले का इंतजार करना चाहिए. मुगलों ने सनातन धर्म के लोगों पर जो जुल्म किये. मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनवाई. वर्तमान सरकार उनको सामने ला रही है.
जमीयत का मुसलमानों पर कितना असर ?
यह सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर जमीयत उलमा-ए-हिंद का मुसलमानों पर कितना असर है? क्या यह संगठन वाक़ई देश भर के मुसलमानों की नुमाइंदगी करता है? अभी तक ज्ञानवापी और मथुरा जैसे मुद्दों पर मुसलमानों की तरफ़ से अकेले असदुद्दीन ओवैसी बोल रहे थे. उन पर मुसलमानों के जज्बात से खेल कर राजनीति करने का आरोप लग रहा था. अब जमीयत भी इस मैदान में उतरी है. लेकिन जमीयत राजनीतिक दल नहीं बल्कि एक सामाजिक संगठन है. हालांकि जमीयत मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संगठन है. लेकिन इसका वजूद देशव्यापी है. दारुल उलूम देवबंद से पढ़ने वाले ज्यादातर उलेमा इस संगठन से जुड़े हुए हैं. इसके दो गुट हैं. एक गुट के अध्यक्ष मौलाना असद मदनी है तो दूसरा गुट महमूद मदनी चलाते हैं. यह सम्मेलन महमूद मदनी ने कराया था लेकिन अरशद मदनी ने भी इसमें शिरकत की. माना जा रहा है कि 14 साल बाद दोनों चाचा भतीजे एक साथ आ रहे हैं. देवबंद में हुए इस सम्मेलन में 25 राज्यों से 1500 से ज़्यादा उलेमा शिरकत करने पहुंचे थे. जमीयत से जुड़ी ज्यादातर उलेमा मस्जिदों के इमाम और मदरसों में पढ़ाने वाले मौलाना हैं. इनका आम मुसलमानों से सीधा संपर्क रहता है. लिहाजा उनकी बात का मुस्लिम समाज पर असर पड़ता है.