मुजफ्फरनगर: विधानसभा उपचुनाव में जनपद की सभी छह विधानसभा सीटों में से चार सीट हासिल करने वाली गठबंधन ने उपचुनाव में एक ओर सीट पर विजयश्री हासिल कर ली है। इस चुनाव में एक बार फिर जाट-मुस्लिम गठजोड़ ने जहां अपना रंग दिखाया है, वहीं गठबंधन ने दलित व गुर्जर वोटों को साधकर नई सोशल इंजीनियरिंग खड़ी कर दी है, जो कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में भी अपना कमाल दिखा सकती है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव को देखे तो जनपद की सभी छह सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया था। अब तक के इतिहास में भाजपा की यह सबसे बड़ी जीत थी। क्योंकि जनपद मुजफ्फरनगर की विधानसभा सीटों पर ज्यादातर बसपा, सपा व रालोद का कब्जा रहता था। भाजपा की सीटें गाहे-बेगाहे एकाध आती थी। जनपद का इतिहास रहा है कि यहां पर हमेशा से या तो जाट-मुस्लिम गठजोड़ से चुनाव में जीत होती थी या फिर दलित-मुस्लिम समीकरण भी प्रत्याशियो का खेवनहार होता था। 2017 के चुनाव में यह समीकरण गड़बड़ा गये थे, जिसके चलते दलित व जाट वोट बैंक भी भाजपा के खाते में चला गया था। 2022 में एक बार फिर जाट-मुस्लिम गठजोड़ के चलते गठबंधन की नैया पार लगी। छह में से गठबंधन ने चार सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। दूसरी ओर मुस्लिम—दलित गठजोड़ में अपना भविष्य देख रही बसपा के हाथ इस बार भी निराशा ही लगी।
मुस्लिमों ने बसपा के इस गठजोड़ को नकारते हुए गठबंधन को तरजीह दी थी। खतौली विधानसभा उपचुनाव में जो नई सोशल इंजीनियरिंग बनी है, वह आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कहीं न कहीं सेतू का काम करेंगी। इस चुनाव में जहां मुस्लिम व जाट गठजोड़ बना है, वहीं दलित व गुर्जर भी गठबंधन के साथ आया है और इसके बेहतर परिणाम निकले हैं। 2022 में जो सीट गठबंधन लगभग 15500 वोटों से हार गया था, वहीं उपचुनाव में गठबंधन 22 हजार से भी अधिक वोटों से जीत गया है।