Uttar Pradesh: साधु-संतों ने किया अमृत स्नान,ढोल-नगाड़ों, तीर-तलवारों के साथ निकला अखाड़ों का जुलूस

Update: 2025-01-14 05:20 GMT
Uttar Pradesh: पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ ही सनातन आस्था के महापर्व महाकुंभ का दिव्य और भव्य शुभारंभ प्रयागराज की पावन धरती पर हो गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार महाकुंभ का पहला अमृत स्नान आज मकर संक्रांति की तिथि पर विधि-विधान से हो रहा है। महाकुंभ के पहले अमृत स्नान पर नागा साधु-संन्यासी धूनी जलाकर अपने शस्त्र, ध्वजा, ढोल, डमरू के साथ अमृत स्नान का जुलूस निकाल रहे हैं और आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। आनंद अखाड़े के आचार्य मंडलेश्वर बालकानंद जी महाराज मकर संक्रांति के पावन अवसर पर पहले अमृत स्नान के जुलूस का नेतृत्व कर रहे हैं।
13 अखाड़ों के साधु आज गंगा, यमुना और 'रहस्यमयी' सरस्वती नदियों के पवित्र संगम त्रिवेणी संगम पर पवित्र डुबकी लगा रहे हैं। मकर संक्रांति से पहले अमृत स्नान के दिन एसएसपी कुंभ मेला राजेश द्विवेदी ने कहा, "सभी अखाड़े अमृत स्नान के लिए आगे बढ़ रहे हैं। स्नान क्षेत्र की ओर जाने वाले अखाड़ा मार्ग पर पुलिस के जवान तैनात हैं। अखाड़ों के साथ पुलिस, पीएसी, घुड़सवार पुलिस और अर्धसैनिक बल भी मौजूद हैं।" जूना अखाड़ा भी अमृत स्नान के लिए निकला है।
मकर संक्रांति पर अमृत स्नान करने के बाद महानिर्वाण अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञान पुरी ने कहा कि यहां भीड़ तो बहुत है, लेकिन जिस तरह से सब कुछ बहता है, वह अद्भुत है। हर कोई पवित्र स्नान के लिए जगह ढूंढ़ता है। मुझे लगता है कि यह सब यहां देखना संभव है।
13 अखाड़ों के संत आज त्रिवेणी संगम पर पवित्र डुबकी लगाएंगे। निरंजनी और आनंद अखाड़े के संत अमृत स्नान के लिए त्रिवेणी संगम पहुंच चुके हैं।सनातन आस्था में महाकुंभ के अमृत स्नान का विशेष महत्व है। अनादि काल से महाकुंभ के अमृत काल में साधु-संन्यासियों और श्रद्धालुओं के संगम स्नान की परंपरा रही है। आदि शंकराचार्य की प्रेरणा से गठित अखाड़े दिव्य शोभा यात्रा के साथ महाकुंभ में अमृत स्नान करते हैं। मान्यता के अनुसार महाकुंभ का पहला अमृत स्नान मकर संक्रांति के पर्व पर होता है।
परंपरा के अनुसार सभी अखाड़े अपनी-अपनी बारी में अमृत स्नान करते हैं। अमृत स्नान की पूर्व संध्या पर सभी अखाड़ों में तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। अखाड़ों के सभी पदाधिकारियों, महंत, अध्यक्ष, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वरों के रथ, हाथी, घोड़े, चांदी के हौदे को फूलों और तरह-तरह के आभूषणों से सजाया गया था। किसी रथ पर भगवान शिव तो किसी पर मोर और भगवान गणेश की आकृति बनी थी।
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