लखनऊ: कवि व कथाकार उषा राय का नया कविता संग्रह है 'भीमा कोरेगांव और अन्य कविताएं'। यह उनका दूसरा कविता संग्रह है। वहीं, यह चौथी कृति है। लखनऊ के इंडियन कॉफी हाउस में उन्होंने इस संग्रह को अपने साहित्यिक और सामाजिक मित्रों के बीच 23 सितम्बर को जारी किया तथा इसमें से अपनी चुनिंदा पांच कविताएं सुनाईं । वे थीं - भीमा कोरेगांव, कब्बन मिर्जा को सुनते हुए, महोख चिड़िया से, रो लो जरा तथा नाभिदर्शना।
उषा राय के इस संग्रह में कुल 46 कविताएं संकलित हैं। उनमें से कुछ के शीर्षक गौरतलब हैं। वे हैं - जन आंदोलन, मनुस्मृति, तेंदुआ, डायन, जनता की लड़ाई लड़ो, बुलडोजर, किसान आंदोलन, शाहीनबाग आदि। ये उषा राय की कविता के मिजाज, तेवर और सरोकारों को बताते हैं। कविता पाठ से पहले उन्होंने अपनी सृजन और विचार यात्रा के बारे में बताया। उनकी यात्रा का पहला पड़ाव 1995 से 2013 तक रहा। दूसरा पड़ाव उसके बाद शुरू होता है । 2018 में उनका पहला कविता संग्रह 'सुहैल मेरे दोस्त' आया। 2021 में कहानी संग्रह 'हवेली' प्रकाशित हुआ। उसके बाद यह नया संग्रह आया है। इसे न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली ने छापा है। इसकी कीमत 225 रुपए है। इस मौके पर उषा राय की कविताओं पर गंभीर और विशद चर्चा हुई जिसकी शुरुआत अजय सिंह ने की। उनका कहना था की इस संग्रह तक पहुंच कर उषा राय की कविताओं का धरातल ऊंचा हुआ है। यहां प्रेम की अन्तर्धारा बहती हुई मिलती है। इन्होंने आंदोलन और संघर्ष को प्रेम और करुणा से जोड़ा है। यह मानवता का को बचाना है। यहां दर्द भरी आवाज को पकड़ने की कोशिश है।
कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने कहा कि आज नफरत सत्ता की संस्कृति है तो वहीं प्रेम प्रतिपक्ष और प्रतिरोध का प्रतीक है। उषा राय के विचार में कोई दुविधा या कोहरा नहीं है। सुहेल और भीमा कोरेगांव दो बिम्ब हैं । एक के केंद्र में जहां अल्पसंख्यक हैं, वहीं दूसरे में दलित प्रतिरोध। कविताएं सत्ता के विरोध में आख्यान रचती हैं। उषा राय को शिल्प व भाषिक संरचना में थोड़ी सजगता की जरूरत है। कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर ने उषा राय की सृजन यात्रा पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अभिव्यक्ति लगातार प्रखर हुई है। भीमा कोरेगांव आज सत्ता की क्रूरता व प्रतिरोध का प्रतीक है। इसे अपनी कविता का विषय बनाना साहस का काम है। यह सामाजिक दायरे की कविताएं हैं। ये समय में हस्तक्षेप करती हैं। इनका अंत एक संदेश से होता है।
कवि व चिंतक भगवान स्वरूप कटियार का कहना था कि इसमें प्रेम की विराटता है। कविताएं प्रेम, संघर्ष और मानवता से भरी हुई हैं। कथाकार-उपन्यासकार शैलेश पंडित की टिप्पणी थी कि उषा राय की कविताओं में समकालीन कविता की मुकम्मल धारा को हम देख सकते हैं। उपेक्षित और विखंडित समाज को इन्होंने अभिव्यक्त किया है। इस संदर्भ में शैलेश पंडित ने 'कब्बन मिर्जा को सुनते हुए' और 'महोखा चिड़िया से' कविताओं की विशेष चर्चा की। कवयित्री सुशीला पुरी का कहना था की उषा राय के अंदर जो बेचैनियां हैं, उसे वे शब्द देती हैं। विसंगतियों के प्रति विद्रोह है। यहां प्रेम है तो क्रांति भी है। इन दोनों संदर्भ में ये वैचारिक रूप से मजबूत हैं और यह उनकी कविता में दिखता है।
युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने कहा कि उषा राय स्मृतियों को सामने लाती हैं। इनकी यहां कौंध है, विषय की विविधता है। अजीत प्रियदर्शी ने उनकी कविता में मोनोलॉग की बात कही तो वहीं दूसरे युवा आलोचक आशीष सिंह ने इससे असहमति जताई और कहा कि कविताएं संवादधर्मी हैं। उनका कहना था कि आज उत्पीड़ित आबादी मुक्ति का जश्न मनाती है तो उसका दमन होता है। कविता वर्तमान की सच्चाई से रूबरू है। उनका कहना था कि जहां स्टेटमेंट है, वहां कविता से कविता बाहर हो जाती है।
इस मौके पर अरुण यादव, विमल किशोर, मंदाकिनी राय, तस्वीर नकवी, ज्योति राय, माधव महेश, सरोज राय, नूर आलम, सतीश उपाध्याय, पूनम अद्वितीय, अंशुल राय आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सभी ने उषा राय के संग्रह का स्वागत किया और उन्हें हार्दिक बधाई दी। बातचीत में यह बात उभर कर आई कि भीमा कोरेगांव वर्तमान सत्ता की बर्बरता का प्रतीक है। ऐसे में इस विषय पर कविता लिखना तथा इसी शीर्षक से संग्रह का आना कवि के साहस को बताता है। उषा राय की कविताएं जहां समय में हस्तक्षेप करती हैं, वहीं ये प्रेम, करुणा और मानवता से लबालब हैं। कार्यक्रम के अंत में उषा राय ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।