आज रामलला के गर्भगृह की पहली शिला रखेंगे सीएम योगी, रामनगरी में उत्साह, बनेगा इतिहास
रामनगरी में उत्साह का माहौल है। एक जून बुधवार को अयोध्या में एक और इतिहास बनने जा रहा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रामनगरी में उत्साह का माहौल है। एक जून बुधवार को अयोध्या में एक और इतिहास बनने जा रहा है। बहुप्रतीक्षित श्रीरामलला के गर्भगृह (घर) के निर्माण के शुभारंभ के साथ ही मंदिर आंदोलन की सुदीर्घ यात्रा का स्वर्णिम पड़ाव भी पूरा हो जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुधवार की सुबह अभिजीत मुहूर्त, मृगशिरा नक्षत्र व आनंद योग में गर्भगृह के लिए पहली शिला पूजन-अर्चन के बाद रखेंगे। इस अवसर का साक्षी बनने के लिए परिसर में ट्रस्ट, संघ के पदाधिकारी, मंदिर आंदोलन से जुड़े किरदार व संत-धर्माचार्यों सहित प्रशासनिक व राजनीतिक हस्तियां मौजूद रहेंगी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तीन पीढ़ी राममंदिर आंदोलन से जुड़ी रही है। उनके गुरू अवैद्यनाथ का मंदिर आंदोलन में अहम योगदान रहा तो सीएम योगी की भी मंदिर निर्माण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। पांच अगस्त को जहां पीएम मोदी ने भूमिपूजन कर मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी थी तो वहीं सीएम योगी रामलला के घर निर्माण की आधारशिला रखेंगे। इससे पहले भी सीएम योगी ने टेंट में विराजमान रामलला को अपने सिर पर रखकर अस्थायी मंदिर में विराजित करने का सौभाग्य प्राप्त किया था। वे भूमिपूजन के भी साक्षी रहे हैं तो अब गर्भगृह निर्माण का शुभारंभ भी उनके हाथों हो रहा है। सीएम योगी सुबह नौ बजे अयोध्या पहुंचेंगे। सबसे पहले हनुमानगढ़ी जाएंगे उसके बाद श्रीरामलला के दरबार पहुंचेंगे। जहां शुभ मुहूर्त में पूजन-अर्चन के साथ गर्भगृह की पहली शिला रखी जाएगी।
इस बीच रामजन्मभूमि परिसर में जारी सर्वदेव अनुष्ठान के क्रम में मंगलवार को रामार्चा पूजन का आयोजन हुआ। 40 वैदिक आचार्य विधिविधान पूर्वक अनुष्ठान में जुटे हैं। मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर मंगलवार को पूरे दिन रामजन्मभूमि में हलचल रही। उधर रामजन्मभूमि परिसर की भव्य सजावट की जा रही है। अतिथियों के बैठने के इंतजाम से लेकर अन्य व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने में अधिकारी जुटे हैं। आला अधिकारी दिनभर कैंप किए रहे। मंडलायुक्त नवदीप रिणवा, डीएम नितीश कुमार, आईजी केपी सिंह सहित अन्य पुलिस बल दिन भर सुरक्षा का प्लान बनाता रहा। डीएम ने बताया कि पूजन कार्यक्रम के लिए केवल सीएम व डिप्टी सीएम केशव मौर्या का प्रोटोकाल आया है।
200 लोग बनेंगे गर्भगृह शिलापूजन के साक्षी
ट्रस्ट सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार करीब दो सौ लोगों की सूची तैयार की गई है जो गर्भगृह की प्रथम शिलापूजन के दौरान परिसर में मौजूद रहेंगे। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि 90 की संख्या में संत-धर्माचार्यों सहित मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे लोग कार्यक्रम के साक्षी बनेंगे। इसके अलावा संघ के भैया जी जोशी, विहिप के दिनेश चंद्र, संजयजी सहित ट्रस्ट के सभी पदाधिकारी, प्रशासनिक अधिकारियों सहित सांसद, विधायक, महापौर समेत करीब दो सौ लोग पूरे कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहेंगें।
नृपेद्र मिश्र पहुंचे, देखी मंदिर निर्माण की प्रगति
राममंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र भी मंगलवार की देर शाम अयोध्या पहुंच गये। उन्होंने रामजन्मभूमि जाकर मंदिर निर्माण कार्य देखा। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने उन्हें पूरी तैयारियों से अवगत कराया। ट्रस्ट के इंजीनियरों ने नृपेंद्र मिश्र को अब तक हुए मंदिर निर्माण के कार्यों की जानकारी दी।
रामलला देवस्थानम में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव की धूम
श्रीरामजन्मभूमि से सटे रामलला देवस्थानम में भी पांच दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव की धूम है। रामलला देवस्थानम को भगवान श्रीराम की संस्कार भूमि माना जाता है। द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की भव्यता देखते ही बन रही है। मंदिर के महंत ज.गु.डॉ. राघवाचार्य ने बताया कि सीएम योगी एक जून को अपराह्न मंदिर में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल होंगे।
डॉ. राघवाचार्य ने बताया कि मंदिर में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व जानकी के साथ भगवान विष्णु, हनुमान जी और रंगनाथ जी सहित जय-विजय की प्रतिमाओं की स्थापना की जा रही है। मंदिर में भगवान विष्णु के वाहन गरुण के 30 फीट ऊंचे स्तंभ का भी निर्माण किया गया है। उन्होंने बताया कि सीएम योगी दोपहर 12:30 बजे मंदिर में पहुंचेंगे। कार्यक्रम में जगद्गुरु श्रीनिवासाचार्य कांची, श्रीरंग मंदिर वृंदावन के अध्यक्ष स्वामी रंगाचार्य सहित बड़ी संख्या में संत-धर्माचार्य मौजूद रहेंगे।
अलौकिक मंदिर, तकनीक में भी होगा अव्वल
राममंदिर न सिर्फ अलौकिक होगा बल्कि तकनीक के मामले में भी अव्वल होगा। रामलला का गर्भगृह मकराना के संगमरमर से सजेगा। 32 सीढ़ियां चढ़कर रामलला के दर्शन होंगे। रामनवमी पर सूर्य की किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी। मंदिर निर्माण में देश की आठ नामी तकनीकी एजेंसियों की मदद ली जा रही है। वास्तु शास्त्र व स्थापत्य कला की भी अनुपम झलक मंदिर में दिखेगी।
नेशनल जियो रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद ने निर्माण स्थल पर जमीन का अध्ययन किया। इसके बाद निर्धारित स्थल से 1.85 लाख घनमीटर मलबा हटाया गया, तो करीब 14 मीटर का गहरा गड्ढा बन गया। जिसे भरने के लिए आरसीसी प्रणाली का उपयोग किया गया। गर्भगृह में 56 परत और शेष भूमि में 48 परतें डाली गईं। अब यह एक मानव निर्मित चट्टान है जो नींव को एक हजार वर्ष तक सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाएगी।
जनवरी 2022 में नींव के ऊपरी सतह पर 1.5 मीटर की मोटी रॉफ्ट ढाली गई। इसी के ऊपर इस समय मंदिर की प्लिंथ का काम चल रहा है। एक जून 2022 से इसी प्लिंथ के ऊपर गर्भगृह का निर्माण शुरू होगा। गर्भगृह 20 फीट लंबा व 20 फीट चौड़ा होगा। जिसका निर्माण वंशीपहाड़पुर के लाल पत्थरों से होगा। गर्भगृह के स्तंभों में देवी-देवताओं सहित रामायण आधारित चित्रों की नक्काशी की जाएगी। दिसंबर 2023 तक गर्भगृह निर्माण का कार्य पूरा करने का लक्ष्य है।
नींव में 2 हजार पवित्र स्थलों की मिट्टी, 115 नदियों का पानी
राममंदिर की नींव में देशभर के भक्तों की आस्था को भी समाहित किया गया है। ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता बताते हैं कि नींव में दो हजार पवित्र जगहों से लाई गई मिट्टी और करीब 115 नदियों से लाया गया पानी डाला गया था। 1989 में दुनिया भर से दो लाख 75 हजार ईंटें जन्मभूमि भेजी गईं थीं। इनमें से नौ ईंटों या शिलाओं को भूमिपूजन में रखा गया। शेष ईटों को राममंदिर के चारों तरफ नींव में भरकर उन्हें सम्मान प्रदान किया गया।
राममंदिर की मुख्य संरचना
कुल क्षेत्रफल-2.7 एकड़
मंदिर की लंबाई-360 फीट
मंदिर की चौड़ाई- 235 फीट
गर्भगृह की ऊंचाई-20 फीट
गर्भगृह के स्तंभों की संख्या-160
प्रत्येक तल की ऊंचाई- 20 फीट
कई ऐतिहासिक पड़ावों से गुजरकर पूरा हो रहा राम भक्तों का सपना
493 साल बाद अयोध्या ने अपने इतिहास का पन्ना फिर से पलट दिया है। जिसके जगह के लिए पांच सौ सालों तक संघर्ष चला, उसी पर रामलला के भव्य घर के निर्माण की शुरूआत एक जून को सीएम योगी आदित्यनाथ करेंगे। रामभक्तों का यह सपना कई ऐतिहासिक पड़ावों से गुजरकर पूरा हो रहा है। गर्भगृह के लिए शिलापूजन के साथ ही श्रीरामजन्मभूमि के सम्मान की प्रतिष्ठा के उत्कर्ष का नया चरण प्रारंभ होने जा रहा है। आंदोलन की राह आसान नहीं थी, आजादी के बाद लंबा मुकदमा चला। नौ नवंबर 2019 को राममंदिर के हक में निर्णय आने के साथ ही यह सपना फलीभूत हुआ।
सन 1528 में मुगल हमलावर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर का ढांचा तोड़कर यहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद सन 1885 में यह मामला पहली बार ब्रिटिश शासन काल के दौरान अदालत में पहुंचा। मामले ने पूरे 135 सालों की कानूनी लड़ाई लड़ी। असली कानूनी लड़ाई आजादी के बाद शुरू हुई। 1949 में मस्जिद के भीतर भगवान रामला की मूर्ति का प्राकट्य होने के बाद लड़ाई तेज हो गई। सरकार ने इस स्थान को विवादित घोषित किया और ताला डाल दिया। इसके बाद मंदिर के लिए आंदोलन चलते रहे। छह दिसंबर 1992 जब लाखों कारसेवकों ने विवादित ढांचे को ढहा दिया।
इस विवाद में अगला बड़ा पड़ाव आया 30 सितंबर 2010 को, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ की जमीन पर अपना फैसला सुनाया। अदालत इस भूमि को 3 हिस्सों में बांटने का फैसला लिया। इसमें प्रमुख हिस्से को राम जन्मस्थान माना गया और इसको मिलाकर एक-तिहाई जमीन राम जन्मभूमि न्यास को देने का फैसला किया गया। वहीं एक तिहाई भूमि निर्मोही अखाड़े को और एक तिहाई मुस्लिम पक्ष को देने का फैसला किया गया। हालांकि, किसी पक्ष को ये फैसला रास नहीं आया और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की गई।
आखिरकार 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और एकमत होकर विवादित 2.77 एकड़ स्थल को राम जन्मस्थान बताकर इसे रामजन्मभूमि न्यास के हवाले करने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट के गठन का आदेश दिया और मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए देने का आदेश दिया। इसी के साथ ही राममंदिर निर्माण व रामभक्तों के संकल्प की सिद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ।
ज.गु. रामदिनेशाचार्य कहते हैं कि वैसे तो संपूर्ण पृथ्वी भगवान श्रीराम का घर है, लेकिन 2.77 एकड़ भूमि जहां उनका जन्म हुआ था वह श्रीराम की आत्मा है। ऐसे में मंदिर निर्माण के साथ ही परमसत्ता की आत्मा जागृत हो रही है, जिससे न सिर्फ अयोध्या बल्कि पूरे विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। रामलला के अपने घर के लिए पांच सौ सालों तक संघर्ष करना पड़ा, इस सुदीर्घ यात्रा की सुखद परिणति मंदिर निर्माण के रूप में हो रही है। (संवाद)
पांच अगस्त 2020 को पीएम मोदी ने किया था भूमि पूजन
फरवरी 2020 में केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नाम से ट्रस्ट की स्थापना की। ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में महंत नृत्यगोपाल दास को चुना गया जो श्रीरामजन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष थे। महासचिव के रूप में विहिप से वर्षों तक जुड़े रहे चंपत राय को जिम्मेदारी दी गई। ट्रस्ट गठित होने के बाद राममंदिर निर्माण की कवायद शुरू हुई। इसी ट्रस्ट ने आखिरकार पांच अगस्त को भूमि पूजन और शिलान्यास का एलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामजन्मभूमि में दर्शन करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने और भूमिपूजन कर राममंदिर का कार्यारंभ किया।
राममंदिर निर्माण से राष्ट्र मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। राममंदिर निर्माण के लिए पूरा देश तन, मन और धन समर्पण के लिए तैयार है। मंदिर निर्माण के लिए हजारों करोड़ का निधि समर्पण इसका गवाह है। अब सिर्फ अलौकिक गर्भगृह में अपने प्रभु को विराजते हुए देखने की इच्छा बची है।
-महंत नृत्यगोपाल दास, अध्यक्ष, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट
श्रीरामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण समग्र, परोपकारी और समकालिक संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रक्षा, संरक्षण को बढ़ावा देने का एक ऐतिहासिक कार्य है। यह देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करेगा। आने वाली पीढ़ियां राममंदिर निर्माण को सांस्कृतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय पुनर्निमाण के लिए अग्रणी कार्य के रूप में देखेंगी।
-चंपत राय, महासचिव, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट
राममंदिर निर्माण सदियों के संघर्ष का प्रतिफल है। मंदिर निर्माण के रूप में वह कल्पना मूर्त रूप ले रही है जो कभी अकल्पनीय हो गई थी। राममंदिर निर्माण से सनातन संस्कृति के गौरव की पुर्नस्थापना का भी मार्ग प्रशस्त हो रहा है। इसके निर्माण की राह बहुत कठिन रही है, मंदिर निर्माण का साक्षी बनना गौरव का विषय है।
-डॉ.अनिल मिश्र, ट्रस्टी, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट
14 वीं शताब्दी तक रहा राममंदिर का अस्तित्व
अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकि कृत रामायण के बालकांड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी। वाल्मीकि रामायण में अयोध्यापुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। रामायण में अयोध्या नगरी के सरयू तट पर बसे होने और उस नगरी के भव्य एवं समृद्ध होने का उल्लेख मिलता है। हर व्यक्ति का घर राजमहल जैसा था। यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इंद्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने इस पुरी को सजाया था।
कहते हैं कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी हो गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गए। उन्हें इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे। तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की अवध भूमि है। उन संतों के निर्देश से सम्राट ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए।
उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी। इसके बाद ईसा की 11वीं शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारत वर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा।
लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। अंतत: 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया,जो 1992 तक विद्यमान रही। बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था।