मुरादाबाद: हिंदी का खाटी बेल्ट और ऊपर से हिन्दू कॉलेज. कम संसाधन और सुविधाओं के अभाव में भी इस कॉलेज के एक छोटे से केंद्र ने पिछले 25 वर्षों से कई भारतीय भाषाओं का गुलदस्ता महका रखा है. ढाई दशक में अब तक यह केंद्र निशुल्क हजारों लोगों को पंजाबी, असमी से लेकर तमिल-तेगुलु तक सिखा चुका है.
यह केंद्र तमिल, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, बंगाली, मराठी, असमी, पंजाबी एवं नेपाली समेत नौ क्षेत्रीय भाषाओं का प्रशिक्षण देता है. एक समय में किसी भी एक भाषा में कोई भी प्रवेश लेकर भाषा ज्ञान ले सकता है.
पंजाबी और बंगाली भाषा सीखने का सबसे अधिक क्रेज
डॉ. बृजेश तिवारी बताते हैं कि नई पीढ़ी पंजाबी व बंगाली सीखने में अधिक रुचि लेती है. सर्वाधिक दाखिले इन दोनों भाषाओं में होते हैं. कुछ लोग नेपाली भी सीखते हैं. संगीत, संस्कृति व सोशल मीडिया ने क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति रुझान बढ़ाया है. कुछ लोग दूसरे राज्यों में रोजगार के अवसर को भुनाने को क्षेत्रीय भाषाएं सीखते हैं.
क्षेत्रीय भाषाओं के लिए शिक्षक तलाशना बड़ी चुनौती
हिंदू कॉलेज स्थित भारतीय भाषा केंद्र के प्रभारी डॉ. बृजेश कुमार तिवारी बताते हैं कि कॉलेज में 25 वर्षों से भारतीय भाषा केंद्र का संचालन है. अब तक करीब 2500 लोगों ने क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्स पूरा करके प्रमाण पत्र हासिल किया है. लोगों की सुविधा को देख कक्षाएं भी दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक संचालित होती हैं. केंद्र पर 13 भाषाएं संचालित करने की अनुमति है. कुछ भाषाओं में शिक्षकों के न मिलने से सिर्फ नौ भाषाओं में कोर्स चल रहे हैं. दुर्भाग्य है कि पांच क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षक ही नहीं मिल रहे हैं. इनमें कन्नड़, उड़िया, कश्मीरी, सिंधी व मलयालम के शिक्षकों के पद रिक्त हैं. इन भाषाओं में शिक्षकों का योगदान महत्वपूर्ण है. इन भाषाओं के जानकारों ने स्वेच्छा से सहयोग नहीं किया तो ये पाठ्यक्रम संकट में पड़ जाएंगे.