नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को वाराणसी के विवादित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने के जिला अदालत के आदेश पर रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सर्वेक्षण करने के जिला अदालत के 20 जुलाई के आदेश के फैसले पर मुहर लगाने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति वाराणसी की याचिका खारिज करते हुए सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने का उन्हें कोई कारण नजर नहीं आता।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपनी विशेष अनुमति याचिका में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति वाराणसी ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा तीन अगस्त को पारित आदेश पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी।
पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के कुछ घंटे बाद दायर की गई विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एम निज़ामुद्दीन पाशा ने पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए तत्काल सुनवाई की गुहार लगाई थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष श्री पाशा ने सर्वेक्षण पर तत्काल रोक लगाने की गुहार लगाते हुए कहा था, “मैंने विशेष अनुमति याचिका ईमेल कर दी है…उन्हें (सर्वेक्षण) जारी न रखने दें।”
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जवाब दिया था, “हम इस पर तुरंत विचार करेंगे।”
मस्जिद का प्रबंधन करने वाली इस समिति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के कुछ घंटों के भीतर ही शीर्ष न्यायालय का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस फैसले पर मुहर लगा दी थी, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई थी।
समिति ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में दलील दी थी कि उच्च न्यायालय के आदेश को “इस तरह के अभ्यास से उत्पन्न गंभीर जोखिमों के कारण रद्द किया जा सकता है, जिसके पूरे देश में परिणाम हो सकते हैं।”
याचिका में पिछले साल एक सर्वेक्षण के लिए एक आयुक्त नियुक्त किए जाने पर “पूरे मुद्दे की अत्यधिक मीडिया कवरेज और सांप्रदायिक रंगों” का हवाला दिया गया था।
इस आधार पर यह भी दावा किया गया था कि ऐसी यह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के “बिल्कुल” खिलाफ थी। इस अधिनियम के तहत 15 अगस्त 1947 को प्रचलित धार्मिक स्थानों के स्वरूप को बनाए रखना अनिवार्य कर दिया था।
जिला अदालत ने 21 जुलाई के आदेश में यह पता लगाने के उद्देश्य से सर्वेक्षण का आदेश दिया था कि क्या मस्जिद पहले से मौजूद मंदिर पर बनाई गई थी।