सुप्रीम कोर्ट ने किया यूपी में आरा मशीनों के लाइसेंस रद्द करने के मामले में जारी नोटिस

उत्तर प्रदेश में आरा मशीनों के प्रोविजनल लाइसेंस रद करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किए हैं।

Update: 2021-12-12 15:35 GMT

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में आरा मशीनों के प्रोविजनल लाइसेंस रद करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने नई आरा मशीनें लगाने के लिए प्रदान प्रोविजनल लाइसेंस रद कर दिए थे। उत्तर प्रदेश सरकार और 250 से ज्यादा लाइसेंस धारकों ने एनजीटी के आदेश को विभिन्न याचिकाओं के जरिये चुनौती दी है।

ये निर्देश जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने शुक्रवार को दिए। कोर्ट ने मामले में प्रतिपक्षी बनाए गए पक्षकारों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया, राजीव दुबे, डीके गर्ग और कई अन्य वकील मौजूद थे जिन्होंने एनजीटी के आदेश का विरोध किया। पीठ ने प्रदेश सरकार से सवाल किया कि एनजीटी के 18 फरवरी, 2020 के आदेश के बाद क्या उसने कोई अध्ययन कराया। प्रदेश सरकार ने कहा कि 2018 की एफएसआइ (फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया) रिपोर्ट वैज्ञानिक अध्ययन है और राज्य को अलग से कोई और अध्ययन कराने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने याचिकाओं पर विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किए।
एनजीटी ने एफएसआइ की रिपोर्ट पर उठाए थे सवाल
एनजीटी ने 18 फरवरी, 2020 को आदेश पारित करके उत्तर प्रदेश की स्टेट लेवल कमेटी (एसएलसी) द्वारा जारी आरा मशीनें लगाने के 614 प्रोविजनल लाइसेंस रद कर दिए थे। एनजीटी ने कहा था कि आंकड़े देखने से पता चलता है कि नई आरा मशीनें चालू करने के लिए मुश्किल से ही कोई इंडस्टि्रयल लकड़ी उपलब्ध होगी। नई आरा मशीनें खोलने से ऐसी स्थिति आने की आशंका होगी जिसमें नई इंडस्ट्री को आवंटित करने के लिए पर्याप्त लकड़ी न बचे। ऐसे में ये आरा मशीनें गैरकानूनी तरीके अपना सकती हैं। एनजीटी ने एफएसआइ की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए लाइसेंस रद कर दिए थे और राज्य सरकार को नए सिरे से सर्वे करने का आदेश दिया था।
एनजीटी को इस मामले में सुनवाई कर लाइसेंस रद करने का अधिकार नहीं : लाइसेंस धारक
आरा मशीनों के लाइसेंस धारकों का कहना है कि एनजीटी को इस मामले में सुनवाई कर लाइसेंस रद करने का अधिकार नहीं है। किसी शिकायत की स्थिति में एसएलसी उसे तय कर सकती है। एसएलसी के खिलाफ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में चुनौती दी जा सकती है। यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के टीएन गोदावर्मन केस में पांच अक्टूबर, 2015 के आदेश तथा वुड बेस्ड इंडस्ट्री के बारे में तय गाइडलाइन-2016 के नियमों में दी गई है। लाइसेंस धारकों का कहना है कि लाइसेंस की शर्त थी कि प्रत्येक आवेदक के पास यूनिट लगाने के लिए जमीन और मशीनें होनी चाहिए जिस पर आवेदकों ने करीब 20 से 50 लाख रुपये खर्च किए हैं।आवेदकों ने इसके लिए बैंक से कर्ज भी लिया है जिसकी किस्तें जा रही हैं। उनका कहना है कि इस इंडस्ट्री से करीब 80 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। लाइसेंस धारकों का कहना है कि एफएसआइ की रिपोर्ट के मुताबिक 60 लाख घनमीटर लकड़ी हर साल उपलब्ध होगी। जिसमें करीब चार हजार आरा मशीनों के लाइसेंस दिए जा सकते हैं। प्रदेश में पर्याप्त आरा मशीनें नहीं होने से लकड़ी दूसरे प्रदेशों में चली जाती है।


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