मेरठ न्यूज़: नजूल की भूमि पर 1100 दुकाने बनी हुई है, जिस पर पूर्ण अधिकार यूपी सरकार और प्रशासन का होना चाहिए। उन दुकानों से किराया वसूली नगर निगम कर रहा है। सरकारी दस्तावेज में भी जिस जमीन पर दुकानें बनी है, उसको लेकर समाजसेवी लोकेश खुराना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी हैं। दरअसल, नगर निगम इस जमीन का फ्री होल्ड आज तक नहीं करा पाया। नहीं नाम दर्ज करा पाया हैं। नजूल की भूमि पर अवैध अनाधिकृत एवं मानचित्र स्वीकृत किए बिना और पार्किंग सुविधा विहीन इन दुकानों का निर्माण हुआ है। इसको लेकर भी बड़ा सवाल है। सघन बाजार नगर निगम ने एक तरह से बना कर उनसे किराया वसूला जा रहा है। दुकानों का बाजारों की नजूल भूमि केवल नगर निगम के प्रबंधन में दर्ज है। मालिकाना हक नगर निगम का नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी नगर निगम इन दुकानों से किराया वसूली कर रहा है। जिला प्रशासन के मालिकाना हक पर नगर निगम ने एक तरह से अतिक्रमण कर रखा है, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन गहरी नींद में है।
इन दुकानों को नगर निगम फ्रीहोल्ड तक नहीं करा पाया है। नगर निगम से प्रशासन नजूल की भूमि को मुक्त नहीं करा पा रहा है। एक आकलन के अनुसार जिस जमीन में यह दुकानें बनी हुई है अरबों में है, लेकिन प्रशासन ने इस दिशा में दुकानों को खाली कराने का कोई कार्य नहीं किया। भगत सिंह मार्केट हो या फिर अन्य सभी दुकाने यहां पर बनी हुई है। दुकानों के निर्माण से सड़क भी संकरी हो गई है। यह पूरा मामला डीएम दीपक मीणा के संज्ञान में हैं। डीएम ने इस पूरे मामले को एडीएम(एफ) को भेज दिया हैं। क्योंकि इसमें फ्रीहोल्ड जमीन नहीं हैं। नगर निगम के अधिकारी भी मानते है कि ये जमीन नजूल की हैं, फ्रीहोल्ड नहीं हैं। इन दुकानों का किराया तीन सौ रुपये प्रति माह है। 1100 दुकानें शहर में हैं। घंटाघर का पालिका मार्केट, भगत सिंह मार्केट, सरदार पटेल मार्केट आदि स्थानों पर जो दुकाने बनी हैं, वो सभी नजूल की जमीन में बनी हैं। शत्रु सम्पत्ति सरकार खोज रही हैं, लेकिन नजूल की जमीन पर नगर निगम मौज काट रहा हैं। भगत सिंह मार्केट का सर्किल रेल 65 हजा रुपये प्रति वर्ग मीटर हैं। इस तरह से ये जिस जमीन पर दुकानें बनी है, उसकी कीमत अरबो रुपये हैं। नगर निगम को देखा जाए इसमें किराया वसूली का अधिकार नहीं हैं। इसको समाज सेवी लोकेश खुराना ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी हैं। जब नगर निगम लिखित में दे रहा है कि ये सभी दुकानें नजूल भूमि में बनी हैं, सिर्फ नगर निगम के पास इनका प्रबंधन हैं। इसके लिए प्रशासन ने नगर निगम को अधिकृत नहीं किया हैं।
इसका कोई लिखित में अनुबंध भी नहीं हैं। प्रशासन ने इसकी लीज भी नहीं की हैं। बैनामा और एग्रीमेंट भी नहीं हैं। आखिर किस हैसियत से निगम इन दुकानों से किराया वसूली कर रहा हैं। जमीन खरीदने पर दाखिल खारिज कराया जाता हैं। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं हैं। इस पूरे प्रकरण को समाज सेवी लोकेश खुराना ने नगर निगम को हाईकोर्ट में चुनौती दी हैं।