अभियोजन की मजबूत टीम ने दिलाई सजा

Update: 2023-04-01 13:03 GMT

इलाहाबाद न्यूज़: माफिया अतीक अहमद के खिलाफ बीते 44 वर्षों में हत्या समेत तमाम जघन्य अपराधों में 101 मामले दर्ज हुए लेकिन सियासी पहुंच और दहशत के चलते उसे किसी भी मुकदमे में कभी सजा नहीं हुई थी. फिर आया 28 मार्च 2023 का दिन जब माफिया का तिलस्म टूट गया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अतीक को उसके इस अंजाम तक पहुंचाने में अभियोजन पक्ष की मजबूत टीम ने अहम भूमिका निभाई. इस टीम में शामिल अधिवक्ताओं ने न सिर्फ एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट में बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक बचाव पक्ष की ओर से समय-समय पर दाखिल की गईं याचिकाओं पर प्रभावी ढंग से पैरवी की. जिसकी वजह से विपक्ष को लाभ नहीं मिल सका. इसके चलते मुकदमा अनावश्यक रूप से विचाराधीन नहीं रह सका और फैसला हुआ.

इस टीम में सबसे पहला नाम है जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी गुलाब चंद्र अग्रहरी का. वह बतौर जिला शासकीय अधिवक्ता विगत दो दशकों से लगातार अभियोजन पक्ष की ओर से मुकदमों में राज्य का पक्ष रखते चले आ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों से वह जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी के पद पर तैनात हैं. इन्होंने अब तक 200 से अधिक आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा एवं दर्जन भर से अधिक आरोपितों को फांसी की सजा दिलवाई है. राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विस्फोट कांड, वलीउल्ला से जुड़े राष्ट्रद्रोह के मुकदमे में प्रभावी ढंग से पैरवी कर रहे हैं. दूसरा नाम है सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार वैश्य का, जो प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद अपर जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी के पद पर नियुक्त किए गए थे. इनकी कई न्यायालयों में तैनाती रही. बाद में इन्हें एमपी-एमएलए कोर्ट में तैनात कर उमेश पाल अपहरण के मुकदमे में प्रभावी पैरवी का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया. तीसरा नाम है एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष लोक अभियोजक वीरेंद्र कुमार सिंह का. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश यूपी में पहली एमपी-एमएलए कोर्ट प्रयागराज में बनाई गई थी. तब से वो इस कोर्ट में आने वाले माननीयों के मुकदमों में प्रभावी ढंग से पैरवी कर रहे हैं.

गठित हुई थी विशेष टीम

उमेश पाल अपहरण के मुकदमे की हर रोज सुनवाई कर इसे गति प्रदान करने के लिए एक विशेष टीम का भी गठन किया गया था. जिसमें प्रयागराज के संयुक्त निदेशक अभियोजन विश्वनाथ त्रिपाठी, अभियोजन अधिकारी अविनाश सिंह, संजय सिंह, सुभाष त्रिपाठी, लव कुश पांडे, उपेंद्र प्रताप नारायण एवं प्रदीप शर्मा के साथ ही अधिवक्ता विक्रम सिन्हा और उमेश पाल को भी शामिल किया गया था. 24 फरवरी को इसी मामले की सुनवाई कर घर लौटे उमेश पाल और उनके दो गनर की हत्या कर दी गई थी. इस टीम ने विशेष भूमिका निभाते हुए पूरी पत्रावली का अध्ययन कर संबंधित साक्ष्यों का विश्लेषण कर मुकदमे को अंजाम तक पहुंचाया.

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