हस्तिनापुर न्यूज़: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मखदूमपुर गांव में लगने वाले गंगा स्नान मेला हिंदू धर्म की आस्था का प्रतीक है। हर साल यहां लगने वाले मेले में लाखों लोग पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाकर निर्मलता प्राप्त करते हैं। उधर दूसरे पहलू की कड़वी सच्चाई यह भी है कि गंगा घाट पर आयोजित होने वाले इस मेले में लाखों रुपये का बजट होने के बाद भी हजारों जंगली जीवों रहवास अर्थात अभ्यारण क्षेत्र से टाटा घास की भारी मात्रा में कटाई कर मेले के लिए रास्ते तैयार किए जाते हैं। वन विभाग जानकारी के बाद भी इस ओर आंखें मूंदे हैं। जिसके चलते मेले ठेकेदारों के हौसले और भी बुलंद हो जाते हैं। टाटा टाइफ घास के कटान के साथ रास्तों पर मिट्टी डालने के नाम पर गंगा से रेत खनन भी खुलेआम किया जाता है।
बता दे कि प्रतिवर्ष मखदूमपुर गंगा घाट पर दशकों से कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर ऐतिहासिक गंगा मेले का आयोजन जिला पंचायत द्वारा किया जाता है। जिसके लिए विधिवत लाखों रुपये का भारी भरकम ठेका छोड़कर मेला स्थल तैयार किया जाता है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं को देखते हुए मेले में स्थाई मार्ग मार्गों का निर्माण किया जाता है, लेकिन ठेकेदार और वन विभाग की मिलीभगत के चलते प्रति प्रतिबंधित टाटा घास का कटान व अवैध खनन कर प्रशासन की आंखों में धूल झोंकी जा रही है।
जिससे वन अभ्यारण क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजातियों में जंगली जंतुओं के रहवास के साथ उनके चरागहों को नष्ट किया जाते हैं। मामला विभागीय अधिकारियों की जानकारी में होने के बाद भी वन्य अधिकारी आज तक कोई कार्रवाई नहीं कर पाए। जिससे वन विभाग और मेले ठेकेदार और वन विभाग की करतूत भी जगजाहिर हो जाती है। वन्य जीवों के अस्तित्व पर लगातार बढ़ रहा संकट 2073 वर्ग किलोमीटर में बिजनौर बैराज से लेकर गढ़मुक्तेश्वर तक फैले आरक्षित क्षेत्र हस्तिनापुर में दुर्लभ प्रजातियों के सांभर, पहाड़ा, बारहसिंगा हस्तिनापुर में दुर्लभ प्रजातियों के सांभर, पहाड़ा, बारह, सिंगा, हिरन, नीलगाय, तेंदुआ, जंगली, सुकर आदि के रहवास और चरागाह होने के साथ प्रतिवर्ष विदेश से हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर वन अभ्यारण क्षेत्र में सदियों के मौसम में आने वाले विदेशी पक्षियों के रहवासी भी हैं, लेकिन वन विभाग की मिलीभगत के चलते शिकारी इन दुर्लभ प्रजातियों के जीवों को नष्ट करने में लगे हैं।
वहीं, मखदूमपुर घाट पर भी करोड़ों रुपये खर्च कर घड़ियाल पुनर्वास एवं कछुआ पुनर्वास कार्यक्रम विश्व प्रकृति निधि व वन विभाग के अधिकारियों की देखरेख में चल रहा है। जानकारों की माने तो गंगा से होने वाले रेत खनन घड़ियाल और कछुआ की प्रजनन क्रिया में बांधा उत्पन्न करता है। जिसके कारण उनकी प्रजातियों पर संकट गहराता जा रहा है। वहीं, जिला पंचायत जेई आशीष कुमार का बयान इस मामले में बेहद हास्यास्पद है। उनका कहना है कि वन आरक्षित क्षेत्र से टाटा टाइफा घास का कटान प्रतिबंधित नहीं है। नियमानुसार ही टाटा टाइफा घास का कटान किया जा रहा है।
बजट आठ लाख फिर क्यों उजड़ रहे जंगली जीवों के रहवास?
महंगाई बढ़ी तो कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा घाट पर आयोजित होने वाले गंगा मेले का बजट बढ़कर 47 लाख हो गया। साथ ही मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बनाई जाने वाली अस्थाई सड़कों का बजट भी बढ़कर आठ लाख हो गया, लेकिन आस्था के नाम पर हो रहा खेल फिर भी नहीं रुका। इसके बाद भी हजारों जंगली जीव के रहवास फिर से उजाडेÞ जाने लगे। जानकारी के बाद भी वन कर्मचारियों ने कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध ली जिससे टाटा टाइफा घास का कटान जारी है।
पेपर मिलों में होती है आइफा घास की सप्लाई: मेले के नाम पर काटे जाने वाली टाटा टाइफ घास का खेल महज यही तक सीमित नहीं है। वन माफिया व कर्मचारियों से मिलीभगत कर टाटा घास की कटाई कर पेपर मिल तक पहुंचा रहे हैं। टाटा घास की कटाई के बाद पेपर मिलों में पहुंचाते हैं। जिसके बाद वन माफियाओं की चांदी होनी लाजिमी है, लेकिन इस सब के बाद वन विभाग के अधिकारी क्यों मौन है? यह हर किसी की समझ के पार है।
मामला संज्ञान में नहीं है यदि टाटा टाइफा घास का कटान और गंगा से रेत खनन किया जा रहा है। कार्रवाई की जायेगी।
-राजेश कुमार, डीएफओ