Noida: पुलिस ने अमेरिकी नागरिकों को ठगने वाले फर्जी कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया

"ठगी के इस गिरोह के चारों सरगना भी पुलिस के हत्थे चढ़े"

Update: 2024-12-26 06:31 GMT

नोएडा: अमेरिकी नागरिकों के साथ ठगी करने वाले कॉल सेंटर का पुलिस ने पर्दाफाश कर 76 आरोपियों को गिरफ्तार किया. इनमें नौ महिलाएं भी हैं. आरोपी तकनीकी सहायता और लोन प्रक्रिया के नाम पर फर्जी मैसेज और लिंक भेजकर अमेरिकी नागरिकों को ठगते थे. ठगी के इस गिरोह के चारों सरगना भी पुलिस के हत्थे चढ़े हैं. पकड़े गए आरोपियों में कई पहले भी जेल जा चुके हैं. इनके पास से भारी संख्या में लैपटॉप, मोबाइल, हेडफोन, राउटर और अमेरिकी बैंक का फर्जी चेक समेत अन्य सामान बरामद हुए.

डीसीपी सेंट्रल नोएडा शक्ति मोहन अवस्थी ने बताया कि सीआरटी, स्वॉट और पुलिस ने आरोपियों को दबोचा. ये सेक्टर-63 के ई ब्लॉक में इंस्टा सॉल्यूशन के नाम से संचालित कॉल सेंटर में काम कर रहे थे. यह गिरोह अब तक 1500 से अधिक अमेरिकी नागरिकों को ठग चुका है. आरोपी एक प्रक्रिया के तहत विदेशी नागरिकों से 99 से 500 अमेरिकी डॉलर तक लेते थे. पैसा बिट क्वाइन, गिफ्ट कार्ड और अन्य माध्यमों से लिया जाता था. हवाला के जरिये रकम भारत में आती थी. गिरोह में शामिल अन्य आरोपियों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है. आरोपियों के पास से बरामद इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का डाटा एनालिसिस साइबर टीम की मदद से किया जा रहा है. गिरोह के सरगना कुरुनाल रे, सौरभ राजपूत, सादिक ठाकुर ओर साजिद अली है. चारों पूर्व में गुजरात से जेल जा चुके हैं. पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि वे कॉल सेंटर से ऑनलाइन कंपनी के सपोर्ट, माइक्रोसाफ्ट, टेक सपोर्ट ,पे डे के नाम पर ठगी करते थे. कॉल सेंटर सेक्शन बंटे थे.

गिरोह के सरगना स्काइप ऐप के जरिए ग्राहकों के व्यक्तिगत डाटा खरीदते थे. इसका भुगतान यूएसडीटी में किया जाता था. डाटा आने के बाद आरोपी अमेरिकी नागरिकों के कंप्यूटर में एक बग भेजते थे. एक साथ दस हजार लोगों को मेल या मैसेज भेजा था. इस बग से कंप्यूटर में खराबी आने के कारण स्क्रीन नीले रंग की हो जाती है. इसके बाद एक नंबर स्क्रीन पर दिखाई देता है, उस नंबर पर अमेरिकी नागरिक कॉल करता था, यह कॉल आरोपी कॉल सेंटर के सर्वर पर लैंड करा लेते थे. कॉल सेंटर में बैठे आरोपी विदेशी नागरिकों की कॉल को उठाते थे और माइक्रोसाफ्ट का अधिकारी बताकर उनकी समस्या का समाधान करने के लिए 99 या उससे अधिक अमेरिकी डॉलर की मांग करते थे. भुगतान होने के बाद पीड़ितों को एक कमांड बताई जाती थी,जिससे कंप्यूटर कुछ ही मिनट में सही हो जाता था. ये सारी प्रक्रिया विदेशी नागरिकों को धोखा देकर पैसे लेने के लिए की जाती थी.

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