होम्योपैथिक अस्पतालों में दवा भरपूर पर नहीं मिल रहा इलाज

हरदुआ किफायतुल्ला और हरहरपुर मटकली गांव के अस्पतालों में ताला बंद

Update: 2023-09-12 06:41 GMT

बरेली: बुखार, खांसी से लेकर डायबिटिज और पार्किंसन जैसी बीमारी की दवाएं राजकीय होम्योपैथिक अस्पतालों में भरपूर हैं. कोरोना काल के बाद से होम्योपैथिक अस्पतालों में दवाओं की सप्लाई काफी बेहतर हुई है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा. मिले भी कैसे, जब राजकीय होम्योपैथिक अस्पतालों पर ताला लटका रहेगा, डॉक्टर-स्टाफ आएंगे ही नहीं तो उपचार की बात करना ही बेमानी है.

होम्योपैथिक अस्पतालों के हालात जानने के लिए हिन्दुस्तान की टीम ने शहर से लेकर देहात तक के कई अस्पताल देखे. जिला होम्योपैथी अधिकारी कार्यालय के रिकार्ड के अनुसार, नवाबगंज के हरहरपुर मटकली गांव में राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय का संचालन किया जाता है. यह अस्पताल 1974 में शुरू हुआ. इस तरह अस्पताल को शुरू हुए 49 वर्ष हो गए हैं. आधा दिन की ओपीडी थी. करीब 930 बजे तक अस्पताल नहीं खुला था. मुख्य दरवाजे पर ताला लगा था. मौके पर न तो डॉक्टर थे और न ही फार्मासिस्ट. लोगों का कहना था कि अस्पताल खुलता है लेकिन रोजाना नहीं. कभी खुला, कभी बंद रहता है. अस्पताल के बाहर की हालत देखकर भी यही लग रहा था.

एक कमरे का अस्पताल वॉशरूम तक नहीं है

आवास विकास में राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय का संचालन 1987 से हो रहा है. बरसात के समय दोपहर करीब 11.25 बजे अस्पताल खुला था. महिला डॉक्टर, फार्मासिस्ट मौके पर मिले. सुबह से 48 मरीज ओपीडी में इलाज कराने आ चुके थे. एक कमरे के चिकित्सालय में वाशरूम तक नहीं था. शौचालय नहीं होने से स्टाफ को काफी परेशानी होती है. पड़ोस में रहने वाले लोगों के घर का शौचालय उपयोग करना पड़ता है. डॉक्टर ने बताया कि दवाएं भरपूर हैं. औसतन रोजाना 75 से अधिक मरीजों की ओपीडी हो रही है.

डॉक्टर-स्टाफ थे नहीं लटका मिला ताला

नवाबगंज के हरदुआ किफायतुल्ला गांव के राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय को खोजना भी काफी मुश्किल है. यह अस्पताल गांव के सचिवालय में अतिरिक्त कक्ष में संचालित होता है. डॉक्टर, स्टाफ थे नहीं और दरवाजे पर ताला लगा था.

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