बरेली न्यूज़: ‘वो जिसके हाथों में छाले हैं, पैरों में बिवाई है. उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है...’ शायर रामनाथ सिंह अदम गोंडवी ने उक्त लाइनें मजदूरों पर लिखी थी. एक मई को हर वर्ष मजदूर दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है. इस बार मजदूर दिवस की थीम सकारात्मक सुरक्षा और हेल्थ कल्चर के निर्माण के लिए मिलकर कार्य करना है. मजदूर दिवस पर इस बार हम कुछ ऐसे श्रमजीवी मेहनतकश लोगों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा. मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया कि समाज उनसे प्रेरणा ले सके.
सुरमा बेच बेटी को सीए बना रहे संजीव: पुराना व सेटेलाइट बस अड्डे पर बसों में सुरमा, कंपट समेत अन्य सामान बेचकर परिवार चलाने वाले राजनगर निवासी संजीव कुमार की बेटी दिल्ली में रहकर सीए की पढ़ाई कर रही है. उनका सपना है कि बेटी चार्टेड एकाउंटेंट तो बेटा अफसर बने. इसके लिए बच्चों की पढ़ाई में भी कोई कसर नहीं छोड़ रखी है. सपना है कि दोनों क्लास वन ऑफिसर बने. संजीव के संघर्ष की कहानी भी रोचक है. सुबह 10 से दोपहर दो बजे तक बसों में सामान बेचते हैं तो वहीं रात में नौ बजे से सुबह छह बजे तक एक होटल में भी काम करते हैं. ताकि परिवार का पेट भरने के साथ ही बच्चों की अच्छी शिक्षा दिला सके.
करेली करगैना में किराये के मकान में रहने वाले अशोक कुमार की कहानी भी संघर्ष की है. पढ़ाई न कर पाने के कारण उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली तो मजदूरी करना शुरू कर दिया. खुद मजदूरी तो की लेकिन मन में ठान लिया कि बच्चों को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाएंगे. मेहनत मजदूरी करके दो बेटे को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बना दिया, जो प्राईवेट कंपनी में जॉब कर रहे हैं. एक बेटी एमबीए कर रही है, जबकि सबसे छोटा चौथा बेटा बीएससी अंतिम वर्ष में हैं और दिल्ली में आईएएस की तैयारी कर रहा है.