आरा (भोजपुर, बिहार) । आरा के बाल हिन्दी पुस्तकालय सभागार में जन संस्कृति मंच, आरा की ओर से 'सृजन के सहयात्री' के तहत लखनऊ से आए दो कवियों - श्रीमती विमल किशोर और कौशल किशोर के कविता पाठ का आयोजन 31 मार्च को किया गया। कविता पाठ से पहले जसम, बिहार के अध्यक्ष जाने माने कवि व कथाकार जितेन्द्र कुमार ने दोनों रचनाकारों का परिचय देते हुए इनकी साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्रा के बारे बताया। उन्होंने कौशल किशोर तथा विमल किशोर के काव्य संग्रह क्रमश: 'वह औरत नहीं महानद थी' तथा 'पंख खोलूं, उड़ चलूं' की कविताओं के सहारे बताया कि कौशल किशोर और विमल किशोर की कविताओं का विषय काफी मौजू है। कवि द्वय ने अपने-अपने पक्ष का संघर्ष उसके यथार्थ रूप की अभिव्यक्ति की है। इस मौके पर कहानीकार ममता मिश्र ने विमल किशोर को जितेन्द्र कुमार जी ने कौशल किशोर को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
विमल किशोर ने कविता पाठ का आरंभ 'कविता' शीर्षक कविता से की जिसमें कहती हैं कि 'कविता तुम जीवन की उष्मा हो/चांदनी की चमक हो /संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हो /शब्दों को पिरोकर /उसी से बनती है तुम्हारी काया'। उन्होंने 'युद्ध के विरुद्ध' कविता सुनाई जो फिलिस्तीन पर इजरायल की बर्बरता के विरुद्ध है। वे कहती हैं 'तानाशाह अट्टहास करता है /पागल हाथी की तरह सब कुछ रौंद रहा है /उसके बूटों के नीचे दबा है एक देश /भाग रहे हैं लोग /कि भागने से जिंदगी बच जाए/ पर वे जाएं तो जाएं कहां'। विमल किशोर स्त्री जीवन, उसकी दशा -दुर्दशाऔर पितृसत्तात्मक समाज से मुक्ति की छटपटाहट को अपनी कविता में व्यक्त करती हैं। 'एक मुट्ठी रेत', 'यादों का सिलसिला', 'ऐ सुंदर लड़कियां', 'पंख खोलूं उड़ चलूं' आदि ऐसी ही कविताएं हैं जिन्हें सुनाकर श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा। उन्होंने सफाई कर्मचारियों की दर्दनाक हालत को 'गटर में' तथा 'मजहबी सब्जी' में सांप्रदायिक आधार पर विभाजन को दर्ज करती हैं।
कौशल किशोर ने भी 'कविता' शीर्षक कविता से ही अपने काव्य पाठ का आरंभ किया जिसमें वह कहते हैं 'कविता के लिए मैं कहीं नहीं जाता /कोई विशेष उपक्रम भी नहीं करता/ जहां और जिनके बीच होता हूं/ कविता वहीं होती है'। इस मौके पर उन्होंने लौटना, बाबूजी का छाता, वह हमीद था, बाबरी मस्जिद का होना, मैं और मेरी परछाई, वक्त कविता के हमलावर होने का है, 70 पार करना', अंधियारे का उजाला आदि कविताएं सुनाईं। इनमें जहां स्मृतियों को बचाने का संघर्ष है, वहीं दमन, विभाजन तथा नफरत से भरे दौर पर तीखा तंज है। कौशल किशोर ने कविताओं से उपस्थित लोगों को भाव-विभोर कर दिया।
कविता पाठ से पहले कौशल किशोर ने संक्षिप्त वक्तव्य में बाबा नागार्जुन की 70 के दशक में लिखी कविता 'अब तो बंद करो हे देवी, यह चुनाव का प्रहसन' को उद्धृत करते हुए कहा कि हम ऐसे दौर में हैं जब लोकतंत्र प्रहसन में बदल गया है । मुक्तिबोध व नागार्जुन ने जो आशंकाएं आजादी के बाद व्यक्त की थी, उसका क्रूर रूप आज हमारे समक्ष है। कविता की यह विशेषता है कि वह अपने समय को रचती है और उससे मुठभेड़ भी करती है। वह कालजीवी होकर ही कालजई बनती है।
कविताओं पर अपनी बात रखते हुए प्रो.अयोध्या प्र.उपाध्याय ने कहा कि दोनों कवियों के पास नई दृष्टि व आधुनिक भाव-बोध है। कौशल किशोर अपनी हामिद और बाबरी मस्जिद वाली कविता में इस बात को ले आते हैं कि किस तरह मानवता तार तार हुई है। हमें गहरे संवेदित करती है। आलोचक प्रो.रविंद्रनाथ राय ने कहा कि कौशल जी की कविताएँ प्रेमचंद के रचना सरोकार का आधुनिक विस्तार है। ये प्रगतिशील परंपरा की हैं। इनमें जीवन है, मानवता की बात है। कवि बल्लभ ने कहा कि विमल जी की कविताएँ नॉस्टैल्जिक होते हुए भी मानवता के पक्ष में हैं। वहीं कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि विमल किशोर की कविताएँ विराट अनुभव से सृजित स्त्री पक्ष की सशक्त अभिव्यक्तियां हैं।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ कवि व कथाकार सुरेश कांटक ने कहा कि कविताएं लिखना आसान काम नहीं है। यह प्रसव की वेदना से सृजित होती हैं। विमल किशोर की कविताओं में निजता के साथ-साथ एक व्यापक स्त्री चेतना भी व्यक्त है। वहीं कौशल किशोर की कविताओं में सृजन की एक ऐसी चिंगारी दीपदीपा रही है जो कवि के एक्टिविस्ट को इन कविताओं में कई प्रकार से जगह देती है।
कार्यक्रम का संचालन जाने माने कवि सुमन कुमार सिंह ने किया। कवि सुनील चौधरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कवि ओमप्रकाश मिश्र को सृजन लोक सम्मान इस अवसर 'सृजनलोक' के द्वारा 'कविता पांडुलिपि सम्मान 2021' से कवि ओमप्रकाश मिश्र को कौशल किशोर और सृजनलोक के संपादक संतोष श्रेयांस द्वारा सम्मानित किया गया। यह सम्मान काव्य-संकलन 'खलिहान' के लिए दिया गया। सम्मान के रूप में उन्हें शाल और स्मृति चिन्ह दिया गया। हाल में उनका कविता संग्रह 'खलिहान' आया है। कौशल किशोर ने ओमप्रकाश मिश्र को इस सम्मान के लिए बधाई देते हुए उनकी 'खलिहान' शीर्षक कविता के अंश का पाठ किया। अपनी कविता में मिश्र कहते हैं 'किसी को प्रिय है काशी/किसी को मथुरा, किसी को अयोध्या/ किसी को मक्का, किसी को मदीना/ मेरे लिए/ सभी तीर्थ स्थलों से /प्रिय है मेरा खलिहान /पृथ्वी पर सबसे अच्छा / सबसे प्रिय स्थान है मेरा खलिहान'। इस अवसर पर इम्तियाज दानिश, अरविंद अनुराग, संजीव सिन्हा, रविशंकर सिंह, ममता मिश्र, आशुतोष कुमार पाण्डेय, सूर्यप्रकाश, विशाल यादव, रामयश अविकल आदि अनेक रचनाकार-कलाकार भी उपस्थित रहे।