इन्वेस्टर्स समिट में पहुंचे उद्योगपति और बड़े व्यापारी, 350 साल पुराने कैंची उद्योग को लगेगी धार

Update: 2023-01-21 10:01 GMT

मेरठ: मेरठ का नाम कैंची उद्योग के लिए भी देश ही नहीं पूरी दुनिया में जाना जाता है। 350 साल पुराने इस उद्योग पर बीती सरकारों की अनदेशी के चलते ग्रहण लगता नजर आया है। लेकिन अब मेरठ के कैंची उद्योग को फिर से धार लगने जा रही है। मेरठ इन्वैस्टर्स समिट में कैंची उद्योग का स्टाल लगाया गया जिसमें बड़ी संख्या में व्यापारी कैंची निर्माण की जानकारी लेनें पहुंचे।

शुक्रवार को मेरठ इन्वैस्टर्स समिट में मेरठ सीजर्स एवं मैनुफैक्चर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शरीफ अहमद ने कैंची उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम की जानकारी दी। उन्होंने संभावना जताई कि आने वाले समय में मेरठ का कैंची उद्योग फिर अपनी पुरानी रंगत पाने में कामयाब हो जाएगा।

इन्वेस्टर्स समिट से उद्योग को मिलेगी धार

यूपी सरकार की इन्वैस्टर्स समिट से मेरठ कैंची उद्योग को नई दिशा मिल रही है। इससे जिले के छोटे कैंची निर्माताओं को अपना कारोबार बढ़ानें में मदद मिलेगी। कई अन्य जिलों से कारोबारी मेरठ पहुंचे और इस उद्योग को लगाने की जानकारी ले रहें है। इससे यहां के कारीगरों को भी राहत मिलेगी, उन्हें दूसरी जगह काम करने का अवसर मिलेगा साथ ही व्यापार में भी इजाफा होगा।

करीब 30 हजार परिवार इस उद्योग पर है निर्भर

मेरठ कैंची उद्योग से करीब 25-30 हज्Þाार परिवारों का पेट भरता है। सीधे तौर पर यहां इसी उद्योग की वजह से लोगों को रोजगार मिलता है। इस समय मेरठ में कैंची बनाने की करीब 225 युनिट लगी है जो इस समय बंद होने के कगार पर हैं। सरकार ने कैंची उद्योग को जीआई टैग (जोगरेफिकल इंडिकेशन) दिया है जिसे बौद्धिक संपदा कहा जाता है।

भारत सरकार की कॉमर्स इंडस्ट्री की तरफ से यह टैग दिया जाता है। इसके लिए केवल उन्हीं उद्योगो को चुना जाता है जो अपना विशेष महत्व रखतें है। कैंची निर्माण की शुरूआत भी मेरठ से ही हुई थी इस वजह से यह विशेष है। यूपी सरकार के 1956 के गजट में इसका जिक्र है।

350 साल पुराना है मेरठ का कैंची उद्योग

शरीफ अहमद ने बताया पूरे देश में मेरठ का कैंची उद्योग सबसे पुराना है। करीब 350 साल से मेरठ में बनने वाली कैंचिया देश के साथ विदेशों में अपनी अलग पहचान बना चुकी है, मेरठ के पहले कैंची निर्माता आकुंज थे। यहां करीब पांच सौ से अधिक तरह की कैंचियां तैयार होती हैं। यहां बनी कैंचिया पूरे हिन्दुस्तान के साथ बांग्लादेश, श्रीलंका, दुबई, साऊदी अरब जैसे देशों में सप्लाई की जाती हैं।

यहां बनी कैंचिया युनिक हैं

मेरठ में बनी कैंचियों को काफी टिकाऊ माना जाता है। यह काफी मजबूत होती है साथ ही इन्हें तैयार करने में जिस धातु का प्रयोग होता है उसकी धार काफी तेज होती है। लेकिन पिछले कुछ समय से चीन में बनी सस्ती और यूज़ एंड थ्रो वाली कैंचियों की मांग बढ़ गई है। उनकी वजह से ही मेरठ कैंची उद्योग की स्थिति खराब होती चली गई।

डीजे आने के बाद बैंड कारोबार पर गहराए संकट के बादल

मेरठ के ब्रासबैंड उद्योग की भी पूरे देश व विदेशों में अलग पहचान है। लेकिन पिछले करीब 10 साल से डीजे बजानें का चलन बढ़ गया है। इससे ब्रासबैंड उद्योग काफी प्रभावित हो रहा है। इन्वैस्टर्स समिट में लगे मेरठ ब्रासबैंड के स्टॉल पर अन्य जिलों व राज्यों से बड़ी संख्या में व्यापारी ब्रासबैंड निर्माण की जानकारी लेने पहुंचे। जिससे दम तोड़ रहे इस उद्योग को भी संजीवनी मिलने की संभावना बढ़ गई है।

मेरठ इन्वैस्टर्स समिट में पहुंचे नासिर अली एंड कंपनी के मालिक रहमतउल्लाह ने बताया मेरठ का ब्रासबैंड उद्योग करीब 150 साल पुराना है। इस कारोबार से जिले के करीब 20 से 25 हजार परिवार जुड़े हुए हैं। यहां बने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स पूरी दुनिया में सप्लाई होते हैं। यहां करीब पांच सौ से ज्यादा वाद्ययंत्र बनाए जाते है,इनमें ब्रास से बने यंत्रों की संख्या ज्यादा है। यह अमेरिका समेत जर्मनी, न्यूयार्क व फ्रांस आदि देशों में सप्लाई होते है।

विदेशों में है मांग

मेरठ में बने ब्रासबैंडों की मांग विदेशों में देश के मुकाबले ज्यादा है। विदेशों से यहां बने यंत्रों की काफी डिमांड आ रही है। सरकार इस उद्योग को वन-डिस्ट्रिक, वन-प्रोडक्ट स्कीम में शामिल करे तो काफी हद तक इस उद्योग से जुड़े लोगो को फायदा होने की संभावना है। इससे उन परिवारों को सीधा लाभ होगा जिनकी पीढ़ीयां सालों से इस धंधे से जुड़ी है।

ब्रासबैंड उद्योग की खराब स्थिति के लिए डीजे जिम्मेदार

पिछले लगभग दस सालों से शादी-बारातों में डीजे का चलन बढ़ गया है। इस वजह से ब्रासबैंड की मांग कम हो गई है। पहले जहां किसी भी शुभकार्य में ब्रासबैंड का प्रयोग होता था अब उनकी जगह डीजे ने ले ली है। भारत में डीजे के चलन की वजह से बैंड की पहचान कम है। पहले मेरठ से ही देश के लगभग सभी राज्यों में वाद्ययंत्र सप्लाई होते थे। लेकिन अब इनकी मांग कम हो गई है। इसका सीधा असर इस कारोबार से जुड़े परिवारों पर पड़ रहा है। हालांकि डीजे ध्वनि प्रदूषण की वजह से खतरनाक है लेकिन उसका चलन बढ़ा है।

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